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SC का बड़ा फैसला: आरोपी का घर तोड़ना कानून के खिलाफ, बुल्डोजर कार्रवाई पर कड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लिया कि किसी भी आरोपी की संपत्ति को तोड़ने का कोई कानूनी आधार नहीं हो सकता। यदि किसी व्यक्ति के घर को गलत तरीके से तोड़ा जाता है, तो उसे मुआवजा देना जरूरी होगा।

by Rakesh Pandey
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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें उसने संपत्तियों को ध्वस्त करने की सरकारी कार्रवाई पर कड़ा रुख अपनाया। खासतौर पर, जिस प्रकार से आरोपियों की संपत्तियों को तोड़ने के लिए बुल्डोजर कार्रवाई की जा रही है, सुप्रीम कोर्ट ने उसे अनुशासनहीन और गैरकानूनी करार दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी आरोपी का घर गिराना न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि यह किसी के मूल अधिकारों का उल्लंघन भी करता है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यह “बुल्डोजर न्याय” स्वीकार्य नहीं है।

आरोपी का घर गिराना नहीं है कानून के मुताबिक

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति आरोपी है, तो इसका मतलब यह नहीं कि उसकी पूरी संपत्ति या घर गिरा दिया जाए। अदालत ने कहा, “कानून का पालन करना अनिवार्य है और अगर कोई व्यक्ति आरोपी है, तो सजा केवल उसी तक सीमित रहनी चाहिए, उसके पूरे परिवार पर इसका असर नहीं डालना चाहिए।” कोर्ट ने इस मुद्दे पर न्यायिक व्यवस्था की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रशासन को अदालत की तरह कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि सरकारी शक्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति के घर को गलत तरीके से तोड़ा जाता है, तो उसे मुआवजा देना जरूरी होगा। अदालत ने इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए आदेश दिया कि हर कार्रवाई से पहले आरोपी को विधिवत नोटिस भेजा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी घर को तोड़े जाने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस दिया जाए।

बुल्डोजर कार्रवाई पर कड़ी प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने बुल्डोजर कार्रवाई की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि किसी भी आरोपी की संपत्ति को तोड़ने का कोई कानूनी आधार नहीं हो सकता। न्यायालय ने प्रशासन को सख्त निर्देश दिया कि वे कानून के दायरे में रहकर कार्रवाई करें। कोर्ट का यह बयान तब आया है जब कई राज्य सरकारों द्वारा अपराधियों या संदिग्धों के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयों का सिलसिला शुरू किया गया है, जिनमें घरों को तोड़ने या संपत्तियों को नष्ट करने का चलन बढ़ा है।

इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि यदि किसी आरोपी का घर या संपत्ति बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के गिराई जाती है, तो पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया जाए। न्यायालय ने यह निर्णय कानून के राज को स्थापित करने के लिए लिया, जिससे यह संदेश जाए कि प्रशासन किसी भी हालत में कानून से ऊपर नहीं हो सकता।

प्रशासन को दिया सख्त संदेश

न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर किसी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कार्रवाई पूरी तरह से विधिपरक हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि प्रशासन किसी निजी संपत्ति को तोड़ता है, तो उसे इसकी न्यायिक समीक्षा का सामना करना होगा।

सार्वजनिक सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और अगर कोई अवैध निर्माण सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा हो, तो उसे हटाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, सड़क के बीच बने मंदिर, मस्जिद, या गुरुद्वारा को सार्वजनिक सुरक्षा के तहत हटाने की बात की गई है। कोर्ट ने इस बारे में यह स्पष्ट किया कि यह आदेश सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होगा और किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक विश्वास के आधार पर कार्रवाई नहीं की जाएगी।

भविष्य के लिए दिशा-निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लंबी सुनवाई के बाद यह आदेश दिया कि तीन महीने के अंदर एक पोर्टल तैयार किया जाए, जिसके माध्यम से अवैध निर्माणों और प्रशासन की कार्रवाई पर निगरानी रखी जा सके। अदालत ने कहा कि ऐसा सिस्टम तैयार किया जाना चाहिए, जिससे किसी भी तरह की अनियमितता या अत्याचार को रोका जा सके और लोगों के अधिकारों का उल्लंघन न हो।

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