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बिना रस्मों के हिंदू विवाह मान्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

by Rakesh Pandey
Supreme Court on Hindu Marriage
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नई दिल्ली/Supreme Court on Hindu Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा आदेश जारी करते हुए कहा है कि बिना वैध रस्मों के किसी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह एक जरूरी संस्कार और पवित्र बंधन है, जिसका भारत के समाज में काफी महत्व है। इसके साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में युवक-युवतियों से ये भी आग्रह किया है कि विवाह करने से पहले काफी गहराई से विचार कर लें, क्योंकि भारतीय समाज के अनुसार, विवाह एक पवित्र बंधन है।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार और पवित्र बंधन है, जिसे भारतीय समाज में काफी महत्व दिया जाता है। हाल ही में पारित अपने आदेश में पीठ ने युवक-युवतियों से आग्रह किया कि वे विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले ही इसके बारे में गहराई से विचार कर लें, क्योंकि भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बंधन है।

Supreme Court on Hindu Marriage: कोर्ट ने कहा, विवाह भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है

सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि विवाह नाचने-गाने और खाने-पीने का अवसर नहीं है। न ही ये अनुचित दबाव डालकर दहेज और उपहारों की मांग करने का अवसर है। विवाह एक पवित्र बंधन है, जो एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए है। कोर्ट ने ये भी कहा कि विवाह भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है।

Supreme Court on Hindu Marriage: कथित तौर पर शादी करने वालों की निंदा

कोर्ट ने उन युवाओं के बीच जारी चलन की भी निंदा की है कि जो हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत बिना वैध विवाह समारोह के एक-दूसरे के लिए पति और पत्नी होने का दर्जा हासिल करना चाहते हैं और इसलिए कथित तौर पर शादी कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि शादी एक पवित्र बंधन है, क्योंकि यह दो लोगों को आजीवन, गरिमापूर्ण, समान, सहमतिपूर्ण और स्वस्थ मिलन प्रदान करता है।

Supreme Court on Hindu Marriage: कोर्ट का कहना, शादी दहेज की मांग करने का अवसर नहीं

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, शादी नाचने-गाने और खाने-पीने या अनुचित दबाव डालकर दहेज और उपहारों की मांग करने का अवसर नहीं है। इसके बाद आपराधिक कार्यवाही शुरू हो सकती है। शादी कोई वाणिज्यिक लेन-देन नहीं है। यह एक पवित्र बंधन है, जो एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए है, जो भविष्य में एक विकसित परिवार के लिए पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं। यह भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है।

Supreme Court on Hindu Marriage: सात फेरों का महत्‍व

पीठ ने 19 अप्रैल के अपने आदेश में कहा कि जहां हिंदू विवाह सप्तपदी जैसे संस्कारों या रस्मों के अनुसार नहीं किया गया हो, उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अपने आप में महत्‍वपूर्ण है। इससे हिंदू विवाह को लेकर कई तरह की बातों को स्‍पष्‍ट किया गया है।

 

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