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Sharda Sinha : शारदा सिन्हा को ‘भारत रत्न’ देने की मांग : लोग बोले- बिहार ही नहीं, पूरे देश में नाम रोशन किया

by Rakesh Pandey
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पटना : बिहार की लोकप्रिय गायिका और मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर शारदा सिन्हा के निधन के बाद उनके योगदान को याद करते हुए उन्हें ‘भारत रत्न’ देने की मांग उठ रही है। सुपौल जिले के गांधी मैदान में एक शोक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस सभा में शहरवासियों ने न केवल उनकी आत्मा की शांति की कामना की, बल्कि उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए विभिन्न मांगें भी उठाईं, जिनमें ‘भारत रत्न’ की मांग प्रमुख रही।

शारदा सिन्हा का योगदान और सम्मान

शारदा सिन्हा को मिथिला और बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक माना जाता था। उनके गीतों ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। शारदा सिन्हा के गायन ने भारतीय लोक संगीत को नए आयाम दिए और उनके बिना कोई भी शुभ कार्य अधूरा सा लगता था। उनके द्वारा गाए गए पारंपरिक गीत, जैसे ‘पानी के बलमुआ’, ‘गोवर्धन के पूजा’ और ‘बिहार के संतान’ को सुनकर न केवल बिहारवासियों को गर्व महसूस होता था, बल्कि यह गीत पूरे भारतवर्ष में गाए जाते हैं।

सभा में भाग लेने वालों ने कहा कि शारदा सिन्हा ने अपने जीवन में हमें गर्व करने का एक अवसर दिया है। उनका योगदान सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने भारत के हर हिस्से में अपनी गायिकी से लोगों के दिलों में जगह बनाई थी। उनके गायन ने न केवल भारतीय लोक संगीत की धारा को जीवित रखा, बल्कि इसे एक वैश्विक पहचान भी दिलाई। इस संदर्भ में उनकी सम्मानित छवि को अब ‘भारत रत्न’ जैसे सर्वोच्च सम्मान से नवाजने की मांग उठाई जा रही है।

सुपौल टाऊन हॉल का नामकरण

शारदा सिन्हा के योगदान को याद करते हुए सुपौल नगर परिषद के प्रमुख, राघवेंद्र झा राघव ने प्रस्ताव रखा कि सुपौल में बने नए टाऊन हॉल का नाम ‘शारदा सिन्हा नगर भवन’ रखा जाए। उन्होंने कहा कि यह नगर भवन पहले से बनकर तैयार है, लेकिन इसे नगर परिषद के हवाले नहीं किया गया है। जल्द ही नगर परिषद की बोर्ड बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा होगी और राज्य सरकार से इसकी स्वीकृति की अपील की जाएगी।

पिता का योगदान भी था अहम

सभा में शारदा सिन्हा के पिता स्वर्गीय सुखदेव ठाकुर का भी जिक्र किया गया। जब सुखदेव ठाकुर विलियम्स स्कूल के प्राचार्य थे, तब उन्हें एक सख्त प्रशासक के रूप में जाना जाता था। हालांकि, उन्होंने अपनी बेटी की शादी के वक्त यह शर्त रखी थी कि शारदा सिन्हा को गायन में कोई रुकावट नहीं डाली जाएगी। यह उनकी बेटी के प्रति उनके प्रेम और विश्वास को दर्शाता है, जिन्होंने शारदा सिन्हा को कला और गायन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की पूरी स्वतंत्रता दी।

शारदा सिन्हा के नाम का शत-प्रतिशत सम्मान

बिहार ही नहीं पूरे देश में शारदा सिन्हा का नाम प्रतिष्ठित है। उनकी गायिकी ने न केवल मिथिला की लोक संस्कृति को बढ़ावा दिया, बल्कि इसे एक नया स्वरूप भी दिया। आज भी उनके गीतों की गूंज हर दिल में सुनाई देती है। उनका योगदान न केवल संगीत की दुनिया में बल्कि बिहार के सांस्कृतिक परिदृश्य में भी अविस्मरणीय रहेगा।

शारदा सिन्हा की याद में की जा रही इस सम्मानजनक पहल को पूरा देश समर्थन दे रहा है। शारदा सिन्हा को भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान से नवाजने की मांग एक उचित कदम है, ताकि उनकी अविस्मरणीय उपलब्धियों को राष्ट्रस्तरीय सम्मान मिल सके। मिथिला की इस बेटी ने सचमुच न केवल अपने राज्य, बल्कि समूचे देश में अपनी गायिकी और कला से एक अमिट छाप छोड़ी है।

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