कहने को बहुत कुछ था,
गर कहने पर आते,
पर अपने मन को तो ना पहचान पाते।
अब आस की मालाएं, मुझे बाँधती नहीं,
ना ही निराशा की जंजीरें जकड़ती हैं।
मेरे सपनो से झाँकती जिन्दगी अब धरातल पर चल रही है।
अब दुःख की हवा कँपकँपाती नहीं,
और सुख के पल बहलाते नहीं हैं।
अब मन-पक्षी के पास उन्मुक्त आकाश है,
धरा के सौन्दर्य को झांकने का अवकाश है।
अनंत आकाश के रचयिता की कृपा का भान है,
उनके होने का अब निश्चित अनुमान है।
सुख-दुःख के हिंडोले पर झूलती ,
जिन्दगी को सम पे लाकर जीना ही गुरु वरदान है।
जियो तो ऐसे कि हर जन तुम्हारा है,
इस परिवार में ना कोई पराया है
तब जीने का हर पल तुम्हारा है। शिशु की तरह सौंप दो अपने आपको,
तब समय का हर पल तुम्हारा है।
समय की लय में गतिमान होकर,
अपनी गरिमा स्वयं पहचान लो ।
काल के लय में प्रवाहित होकर स्वयं में सनातन को पहचान लो।”
क्यों गुरु ने ये सद्मार्ग सुझाया है ?
इसे आत्मसात कर सदानंद बन जाओ।
सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् की प्रतीति से भर जाओ ।
माला रानी गुरु, प्रोफेसर (से. निवृत), संस्कृत
श्री रामकृष्ण म. महाविद्यालय – गिरिडीह, झारखंड
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