Jamshedpur (Jharkhand) : जब हम रक्षाबंधन के की बात करते हैं, तो भाई-बहन का पवित्र रिश्ता और उनकी रक्षा का संकल्प सबसे पहले दिमाग में आता है। लेकिन, जमशेदपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर चाकुलिया प्रखंड में रहने वाली जमुना टुडू के लिए यह त्यौहार साल भर चलता है। वह पिछले 20 वर्षों से पेड़ों को ही अपना भाई मानकर उनकी रक्षा कर रही हैं। पेड़-पौधों और जंगलों को बचाना ही उनके जीवन का एकमात्र मकसद और जुनून बन चुका है।
वन माफियाओं के खिलाफ जंग और पद्मश्री का सम्मान
जमुना टुडू ने केवल पेड़ों की रक्षा का संकल्प नहीं लिया, बल्कि जरूरत पड़ने पर उन्होंने वन माफियाओं से भी लोहा लिया है। ग्रामीण महिलाओं की एक मजबूत टीम बनाकर उन्होंने जंगलों की अवैध कटाई को रोकने का बीड़ा उठाया है। इसी अदम्य साहस और समर्पण के कारण आज जमुना टुडू किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। देश भर में उनकी पहचान एक पर्यावरण योद्धा के रूप में बन चुकी है, जिसे भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर उनकी मुहिम को और भी बल दिया है।
रक्षाबंधन पर लिया रक्षा का संकल्प
इस बार रक्षाबंधन के पावन पर्व पर भी जमुना टुडू ने अपने इस अनोखे रिश्ते को निभाया। वह जंगलों में गईं, जहां उन्होंने शंख ध्वनि और विधि-विधान के साथ पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधा। यह सिर्फ एक रस्म नहीं थी, बल्कि उनकी तरफ से प्रकृति की रक्षा के संकल्प को एक बार फिर दोहराने का भावपूर्ण तरीका था। जमुना टुडू की यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्ता सिर्फ खून का नहीं, बल्कि समर्पण और प्रेम का होता है। उनका “ट्री सिस्टर” के रूप में यह प्रयास हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास कराता है।