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Jamshedpur News: जमशेदपुर में आदिवासी महादरबार में पूर्व सीएम चम्पई सोरेन की हुंकार, दान पत्र से लूटी गई जमीन वापस दिलाने का ऐलान

पूर्व सीएम ने आरोप लगाया कि आज भी दान पत्र के नाम पर जमीनें लूटी जा रही हैं और सरकार पेसा अधिनियम लागू करने की इच्छा-शक्ति नहीं दिखा रही है।

by Mujtaba Haider Rizvi
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Jamshedpur (Jharkhand) : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने जमशेदपुर में रविवार को आयोजित आदिवासी महादरबार में कहा कि राज्य सरकार आदिवासियों की जमीन और अधिकारों को लेकर गंभीर नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि आज भी दान पत्र के नाम पर जमीनें लूटी जा रही हैं और सरकार पेसा अधिनियम लागू करने की इच्छा-शक्ति नहीं दिखा रही है।

एक्सएलआरआई में आयोजित जनता दरबार में चम्पाई सोरेन ने टाटा समूह और हेमंत सरकार दोनों पर हमला बोलते हुए कहा कि आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन बिना अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी किए कब्जाई जा रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि आगामी 22 दिसंबर को वीर भूमि भोगनाडीह में एक बड़ी बैसी (पारंपरिक बैठक) होगी, जिसमें दान पत्र द्वारा लूटी गई जमीन वापस दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे।

पेसा लागू करने में टालमटोल

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जब वे सत्ता में थे तो पेसा अधिनियम की समीक्षा कर पारंपरिक ग्राम सभाओं को सशक्त करने का प्रयास किया गया था। लेकिन मौजूदा सरकार इसे लागू ही नहीं करना चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार का मकसद आदिवासी समाज को “अबुआ-अबुआ” के नारे में उलझाकर सवाल पूछने से रोकना है। जल-जंगल-जमीन पर संघर्ष का आह्वानचंपई सोरेन ने कहा कि बाबा तिलका मांझी, सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और भगवान बिरसा मुंडा ने जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ी थी और अब आदिवासियों को भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाना होगा। उन्होंने दावा किया कि कपाली, दुमका, रांची से लेकर साहिबगंज तक आदिवासियों की जमीन पर अवैध कब्जे और घुसपैठ बढ़ रहे हैं।

टाटा समूह पर आरोप

चम्पाई सोरेन ने आरोप लगाया कि टाटा जैसे औद्योगिक घरानों ने झारखंड और ओडिशा में आदिवासी समाज की हजारों हेक्टेयर जमीन ले ली है। लेकिन उसके बदले आदिवासियों को न तो जमीन का समुचित मुआवजा मिला और न ही स्थायी विकास के अवसर। आरक्षण और धर्मांतरण पर बयानपूर्व सीएम ने कहा कि आदिवासी समाज की महिला गैर-आदिवासी से विवाह करे तो उसमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ऐसी महिला अपने पैतृक समाज के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनवाकर आरक्षण का लाभ ले, इसका विरोध होना चाहिए। इसी तरह जो आदिवासी दूसरे धर्म को स्वीकार करते हैं, उन्हें भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

बुद्धिजीवियों की भागीदारी

इस आदिवासी महा दरबार में पूर्व आईआरएस अधिकारी निशा उरांव, प्रो. ज्योतिंद्र बेसरा, सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुभाशीष रशिक सोरेन, सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू समेत कई बुद्धिजीवियों ने विचार रखे। निशा उरांव ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद पेसा कानून को अब तक लागू नहीं किया गया है।यह आयोजन आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा की ओर से हुआ, जिसमें झारखंड, बंगाल और उड़ीसा से हजारों माझी बाबा और समाज के प्रतिनिधि शामिल हुए।

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