रांची: झारखंड की राज्य समन्वय समिति को लेकर प्रदेश की राजनीति में नया विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने इसे निष्क्रिय, अप्रासंगिक और राजनीतिक लाभ पहुंचाने वाली समिति करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि समिति का गठन विकास कार्यों में समन्वय के नाम पर किया गया था, लेकिन अब यह सत्ताधारी नेताओं को राज्य मंत्री दर्जा देने का माध्यम बनकर रह गई है।
2.5 साल में सिर्फ एक बैठक, बाकी समय केवल खर्च : प्रतुल शाहदेव
प्रतुल शाहदेव ने बताया कि राज्य समन्वय समिति का गठन वर्ष 2022 के अंत में किया गया था, लेकिन अब तक केवल एक बैठक 10 जून, 2023 को हुई है। वर्ष 2024 और अब 2025 तक एक भी बैठक नहीं हुई।
उन्होंने यह भी बताया कि 9 अक्टूबर 2024 को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश को भी इस समिति का सदस्य बनाकर उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया गया।
इस पर सवाल उठाते हुए प्रतुल बोले, “जब बैठकें ही नहीं हो रहीं, तो राज्य सरकार बताए कि इस समिति पर जनता की गाढ़ी कमाई से कई करोड़ रुपये खर्च करने का औचित्य क्या है?”
समन्वय समिति बनी केवल राजनीतिक समझौतों का मंच?
प्रतुल शाहदेव ने यह भी आरोप लगाया कि समिति में कुल नौ सदस्य हैं और इनमें से अधिकांश को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है। लेकिन ये लोग जनता के हितों के बजाय राजनीतिक सौदेबाजी का हिस्सा बन गए हैं। समिति न तो कोई निर्णय ले रही है और न ही कोई ठोस कार्य योजना बना रही है। भाजपा प्रवक्ता ने मुख्यमंत्री से मांग की कि वे स्पष्ट करें कि इस निष्क्रिय समिति को बनाए रखने का लाभ किसे और क्यों मिल रहा है?
भाजपा का सवाल: जनता का पैसा आखिर किसलिए?
प्रतुल ने यह भी कहा, “विकास कार्यों की निगरानी के नाम पर बनी यह समिति केवल प्रशासनिक खर्चों और सुविधाओं की बर्बादी का उदाहरण बन गई है। इससे न तो जनता को कोई लाभ मिल रहा है और न ही प्रदेश के विकास में कोई सहयोग मिल रहा है।”
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