रांचीः झारखंड में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच संवैधानिक विवाद गहरा गया है। केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को गुप्ता का कार्यकाल समाप्त मानते हुए उन्हें पद से हटाने की बात कही है, जबकि राज्य सरकार का कहना है कि गुप्ता अभी भी डीजीपी के पद पर बने हुए हैं।
DGP अनुराग गुप्ता की नियुक्ति और विवाद
अनुराग गुप्ता को जुलाई 2024 में झारखंड सरकार ने डीजीपी नियुक्त किया था। हालांकि, विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने उन्हें पद से हटा दिया था। नवंबर 2024 में सरकार के सत्ता में लौटने के बाद उन्हें फिर से डीजीपी नियुक्त किया गया। जनवरी 2025 में राज्य सरकार ने नए नियमों के तहत डीजीपी की नियुक्ति के लिए चयन समिति गठित की, जिसमें उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, मुख्य सचिव, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के नामित अधिकारी शामिल थे। इसी समिति की सिफारिश पर 3 फरवरी 2025 को गुप्ता को फिर से डीजीपी नियुक्त किया गया।
हालांकि, 30 अप्रैल 2025 को गुप्ता की 60 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद उनका कार्यकाल समाप्त हो गया। केंद्र सरकार ने 3 मई 2025 को एक पत्र जारी कर राज्य सरकार से गुप्ता की नियुक्ति को नियमों के खिलाफ बताते हुए उन्हें पद से हटाने को कहा। केंद्र का कहना है कि गुप्ता की नियुक्ति यूपीएससी की सिफारिश के बिना की गई, जो संविधान के अनुच्छेद 312 और सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह मामले के आदेशों का उल्लंघन है।
विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी ने गुप्ता की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए झारखंड उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है। मरांडी का कहना है कि राज्य सरकार ने संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी की है। उन्होंने ट्वीट किया, “झारखंड देश का पहला राज्य बन गया है जहां डीजीपी का पद 10 दिनों से खाली है और जो ‘डीजीपी’ जैसे काम कर रहा है, वह बिना वेतन के सेवा दे रहा है!”
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश और केंद्र-राज्य विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के प्रकाश सिंह मामले में पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए थे। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार, राज्य सरकारों को यूपीएससी से तीन वरिष्ठ अधिकारियों की सूची प्राप्त करनी होती है, जिनमें से एक को डीजीपी के पद पर नियुक्त किया जाता है। इसके अलावा, डीजीपी की नियुक्ति के समय उनके पास कम से कम छह महीने की सेवा बची होनी चाहिए और उनकी नियुक्ति की न्यूनतम अवधि दो वर्ष होनी चाहिए।
झारखंड सरकार ने जनवरी 2025 में नए नियमों के तहत डीजीपी की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव किया, जिससे केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई है। केंद्र का कहना है कि राज्य सरकार का यह कदम संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ है।
कानूनी स्थिति और आगामी सुनवाई
झारखंड उच्च न्यायालय में बाबूलाल मरांडी की जनहित याचिका की सुनवाई जून 2025 में निर्धारित है। इस मामले में राज्य सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी कि अनुराग गुप्ता का कार्यकाल संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं।
इस संवैधानिक विवाद ने झारखंड में प्रशासनिक व्यवस्था की वैधता और केंद्र-राज्य संबंधों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि उच्च न्यायालय इस मामले में क्या निर्णय देता है और राज्य सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर क्या दिशा-निर्देश जारी करता है।