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Karma Parv 2025 : झारखंड में करमा पर्व : जहां नृत्य, भक्ति और भाईचारा चलता है साथ

by Rakesh Pandey
Karma Parv 2025 : झारखंड में करमा पर्व : जहां नृत्य, भक्ति और भाईचारा चलता है साथ
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रांची : जब ढोल-मांदर की थाप पर थिरकते कदम, करम गीतों की मिठास से गूंजते गांव और करम पेड़ की डाल के चारों ओर आस्था का सैलाब उमड़ने लगे, तब समझिए झारखंड में करमा पर्व का आगमन हो चुका है।

यह सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का उत्सव है। भाई-बहन के रिश्तों की गहराई, समाज में समरसता और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का संगम है करमा। सदियों से आदिवासी समाज की आत्मा में रचा-बसा यह त्योहार अब पूरे झारखंड की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की रात को जब गांवों में करम डाल की पूजा होती है, तो उसमें छिपा होता है परंपरा, प्रेम और प्रकृति का अद्वितीय संदेश।

यह पर्व इस साल भी पूरे राज्य में, खासकर राजधानी रांची में, जबरदस्त उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। करमा पूजा की तैयारियां कई दिनों पहले से शुरू हो जाती हैं और यह पर्व झारखंड की समृद्ध आदिवासी संस्कृति का अभिन्न अंग है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस पर्व को राज्य की सांस्कृतिक धरोहर बताया और जनता को शुभकामनाएं दीं। यह पर्व अब केवल आदिवासी समुदायों तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि झारखंड की साझा पहचान का उत्सव बन गया है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी परंपराएं सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि भविष्य की राह भी दिखाती हैं। आज जब जलवायु परिवर्तन और सामाजिक विभाजन जैसी चुनौतियां हैं, करमा पर्व हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और एकता की भावना को मजबूत करने की प्रेरणा देता है।


Karma Parv 2025 : करमा पर्व 2025 : प्रकृति और आस्था का अनुपम संगम

इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है ‘जावा’ बोना। गांव की महिलाएं और युवतियां मिलकर धान, मक्का, चना, गेहूं और जौ जैसी फसलों के दाने इकट्ठा करती हैं। इन दानों को एक टोकरी में मिट्टी के साथ बोया जाता है। ये अंकुरित बीज, जिन्हें ‘जावा’ कहा जाता है, पूजा का एक पवित्र हिस्सा होते हैं और बाद में इन्हें प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। करम देवता को धरती की उपज और समृद्धि का देवता माना जाता है, और उनकी पूजा करके लोग अपने परिवार की खुशहाली और बेहतर फसल की कामना करते हैं।


Karma Parv 2025 : भाई-बहन का रिश्ता : करमा का मूल आधार

करमा पर्व का एक और महत्वपूर्ण पहलू भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं। यह पर्व रक्षाबंधन की भावना को गहराई से दर्शाता है। बहनें भाई की सुरक्षा और समृद्धि के लिए उपवास रखती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों को उपहार देकर अपने प्रेम और जिम्मेदारी का इजहार करते हैं। यह परंपरा आदिवासी समाज में पारिवारिक मूल्यों और आपसी प्रेम की मजबूती का प्रतीक है। करमा और धरमा की पौराणिक कथा भी इसी रिश्ते की गहराई को उजागर करती है, जहां धरमा अपने भाई करमा को वापस लाकर गांव में खुशहाली लाता है।

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