जमशेदपुर : बसंत पंचमी आते ही झारखंड पलाश के सूर्ख फूलों से निखर उठती है। राज्य के जंगलों में चहुंओर पलाश के ये चमकीले फूल न केवल यहां की प्राकृतिक छटा को मनमोहक बना देते हैं, बल्कि ये हमें हिंदू नववर्ष के आगमन का भी अहसास कराते हैं।
पलाश के फूल-प्रकृति का श्रृंगार
पलाश, जिसे टेसू भी कहा जाता है, को अंग्रेजी साहित्यकारों ने “Flame of the Forest” या “वन ज्योति” का नाम दिया है। इन फूलों का रंग और आकार एक दीये जैसा होता है, जो देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं। खूंटी, गुमला, लोहरदगा और सिंहभूम जैसे इलाकों में पलाश के फूल इन दिनों हर तरफ खिले हुए हैं और प्राकृतिक सौंदर्य को चार-चांद लगा रहे हैं।
पलाश और सेमल के फूलों से बने रंग
पलाश और सेमल के फूलों का उपयोग विशेष रूप से होली के दौरान प्राकृतिक रंग और गुलाल बनाने के लिए किया जाता है। जानकार बताते हैं कि आजकल भले ही केमिकल युक्त रंगों से होली खेली जाती है, लेकिन पहले लोग पलाश और सेमल के फूलों से रंग और गुलाल बनाते थे। फूलों को एक बड़े बर्तन में रातभर पकाया जाता था और फिर धूप में सुखाकर गुलाल तैयार किया जाता था।
प्राकृतिक रंगों के फायदे
विशेषज्ञों की मानें, तो हमें हमेशा प्रकृति के साथ चलने की आवश्यकता है। पलाश और सेमल के फूलों से बने रंग शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं, जबकि केमिकल युक्त रंग सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने से पानी की भी बचत होती है।
पलाश के फूलों के औषधीय गुण
पलाश के फूलों के कई औषधीय गुण भी हैं। आयुर्वेद के जानकार बतात हैं कि पलाश का उपयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। पलाश के फूलों की खरीदारी कर उन्हें प्राकृतिक रंग बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इससे स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही, वे प्रकृति से भी जुड़ेंगे।
पलाश के पेड़ों की भरमार
खूंटी, सिंहभूम समेत उक्त क्षेत्रों में पलाश के पेड़ों की भरमार है, लेकिन इसके सही उपयोग पर प्रशासन का अभी तक ध्यान नहीं गया है। जेएसएलपीएस के एक अधिकारी के अनुसार खूंटी जिला प्रशासन पलाश के फूलों के व्यावसायिक उपयोग पर विचार कर रहा है, जैसा पलामू और हजारीबाग जिलों में किया जाता है। वहां जिला प्रशासन पलाश के फूलों की खरीदारी करता है।