रांची : जोड़ों की बीमारी का असर फेफड़े पर भी पड़ता है। अर्थराइटीस, कमर-घुटने का दर्द या इससे जुड़ी बीमारी फेफड़े में सिकुड़न पैदा करती है। धीरे-धीरे यही जोड़ों का दर्द फेफड़े की बीमारी को बढ़ाता है। इसे कनेक्टिंक टिश्यू डिजिज यानी सीटीडी-आईएलडी बीमारी कहा जाता है। कभी भी जोड़ों के दर्द को हल्के में ना लें और खुद से इलाज ना करें।
यह बातें छाती रोग विशेषज्ञ डा श्यामल सरकार ने रविवार को होटल रेडिशन ब्लू में रेस्पिरेटरी मेडिसिन इंटरवेंशनल पलमोनोलाजी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन (आरआईसीएस) पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में कही। उन्होंने बताया कि 13-15 प्रतिशत लोग जो जोड़ों की बीमारी से ग्रसित हैं उन्हें फेफड़े की बीमारी होती है। जबकि विश्व स्तर पर 20 से 30 प्रतिशत ऐसे मामले आते हैं जो जोड़ों की बीमारी के बाद फेफड़े की बीमारी से पीड़ित होते हैं।
जोड़ों की बीमारी में सांस की समस्या को अनदेखा ना करें :
डा श्यामल सरकार ने बताया कि शुरुआती दौर में अगर बीमारी पकड़ में आ जाए तो इलाज संभव है, नहीं तो फेफड़ों के सिकुड़ने से मरीज की माैत तक हो सकती है। जोड़ों की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को धीरे-धीरे सूखी खांसी, सांस फुलने की समस्या और फेफड़े की क्षमता कम होने लगती है। ऐसे लक्षणों के बाद सही डाक्टर से सलाह लेने की जरूरत है ताकि समय पर इलाज शुरू किया जा सके।
सोने समय खर्राटा है एक बीमारी, बढ़ाता है हार्ट की समस्या :
सोने समय खर्राटा आना एक गंभीर बीमारी के लक्षण है, इसे कभी भी हल्के में ना लें। बड़े हो या बच्चे अगर खर्राटा आता है तो इसका मतलब है कि सांस नली पतला हो गया है। यह बातें सेमिनार में आयोजित पैनल डिसकसन में सामने आयी, जिसमें डा श्यामल सरकार के नेतृत्व में मेडिका के डा जोसेफ जैन, ईएनटी डा पल्लवी शर्मा, आर्थोडेंटिस्ट डा आदित्य नारोली और डा अर्चना मल्लिक ने खर्राटा आने की बीमारी को आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) बताया।
डा सरकार ने बताया कि यह नींद से जुड़ा एक ब्रीदिंग डिस्आर्डर है। इस वजह से सोते समय सांस बार-बार रुकती और फिर चलती है। इस बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति की नींद में सांस रुक जाती है और उसे पता भी नहीं चलता। इसके लिए जरूरी है कि स्लीप स्टडी कराई जाए, यह एक प्रकार की जांच है, जिससे रात भर मरीज के खर्राटे व सांस की समस्या को नापता है।
इसके बाद इसकी स्टडी कर इलाज किया जाता है। इसके लिए कोई दवा नहीं है, बल्कि सीपैप मशीन का प्रयोग कर धीरे-धीरे इस बीमारी से निजात पाया जा सकता है। दूसरा उपाए सर्जरी है, जिसमें सांस की नली की सर्जरी कर उसे ठीक किया जाता है।
इससे पहले कार्यक्रम का उद्घाटन आर्किड सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल के चेयरमैन उा एससी जैन, चीफ एडमिनिस्ट्रेटिव आफिसर डा पीके गुप्ता, अधीक्षक डा कर्नल अंजनी कुमार, डा निशीथ कुमार, डा श्यामल सरकार एवं डा पीके सिन्हा ने किया।
बिहार-झारखंड के डाक्टरों ने दी अपनी प्रस्तुति :
सम्मेलन में देश भर के वरिष्ठ श्वास व छाती रोग विशेषज्ञ वक्ता के रूप में शामिल हुए। इस सम्मेलन का उद्देश्य छाती एवं श्वास रोगों से संबंधित चिकित्सा क्षेत्र में नित्य प्रतिदिन हो रहे विकास एवं जुड़े उच्च स्तरीय इलाजों पर समीक्षा करना था। इस सम्मेलन में बिहार, झारखंड एवं देश के अन्य हिस्सों से आए चिकित्सक नवीनतम चिकित्सा प्रगति और तकनीकी उपलब्धियों को प्रस्तुत किया।
इस सम्मेलन में रेस्पिरेटरी मेडिसिन, इंटरवेंशनल पलमोनोलाजी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन क्षेत्र के प्रसिद्ध विशेषज्ञों एवं चिकित्सकों के बीच मान्यता प्राप्त किए गए मानव स्वास्थ्य मुद्दों को संबोधित किया।
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सम्मेलन में डा अंशुमान मुखोपाध्याय (वरिष्ठ श्वास रोग विशेषज्ञ, एएमआरआई हास्पिटल, कोलकाता), डा. पीपी बोस (वरिष्ठ श्वास रोग विशेषज्ञ, नेशनल हार्ट इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली), डा बेलाल बिन असफ (एसोसिएट डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट आफ चेस्ट सर्जरी, मेदांता, नई दिल्ली), डा लवलीन मंगला (वरिष्ठ श्वास एवं छाती रोग विशेषज्ञ, मेट्रो हॉस्पिटल, नोएडा), डा श्यामल सरकार (वरिष्ठ श्वास एवं छाती रोग विशेषज्ञ, आर्किड मेडिकल सेंटर, रांची), डा श्वेतम कुमार (कंसलटेंट रेडियोलाजिस्ट), डा बिंध्याचल कुमार गुप्ता (कंसलटेंट रुमेटोलॉजिस्ट, रांची), डा योगेश जैन (छाती एवं स्वास रोग विशेषज्ञ, मेडिका हास्पिटल, रांची), डा निशीथ कुमार (वरिष्ठ छाती एवं स्वास रोग विशेषज्ञ, आर्किड मेडिकल सेंटर, रांची) आदि प्रसिद्ध विशेषज्ञ वक्ता के रूप में उपस्थित हुए ।