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Noise Pollution : शहर में हॉस्पिटलों के पास हो रहा सबसे ज्यादा शोर, हार्ट अटैक और उच्च रक्तचाप का खतरा

by Vivek Sharma
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रांची : वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण की समस्या तो दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है, इस बीच शहर में साउंड पॉल्यूशन का संकट भी गहराता जा रहा है। इसका असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। यह शोर अब हॉस्पिटल में इलाज कराने वाले मरीजों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। आसपास के शोर से मरीजों के सामने गंभीर समस्याएं खड़ी हो गई हैं।

इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सदर हॉस्पिटल के पास ही सबसे ज्यादा साउंड पॉल्यूशन हो रहा है। लेकिन, इसकी मॉनिटरिंग करने वाले जिम्मेदारों को यह दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि शहर में साउंड पॉल्यूशन पर रोक कौन लगाएगा। हाईकोर्ट ने इसे सख्ती से शहर में लागू कराने का भी आदेश दिया था। इसके बावजूद धड़ल्ले से हाई बेस वाले लाउड स्पीकर का इस्तेमाल किया जा रहा है।

निर्धारित मानक से कई गुना अधिक शोर

राजधानी के अल्बर्ट एक्का चौक पर शनिवार को साउंड पॉल्यूशन का लेवल 100 डेसिबल से ज्यादा था, जो कि निर्धारित मानक से कई गुना अधिक है। सरकारी नियमों के अनुसार, हॉस्पिटलों और शैक्षणिक संस्थानों के आसपास 50 डेसिबल से ज्यादा साउंड नहीं होना चाहिए। लेकिन, वर्तमान स्थिति यह है कि अगर यह समस्या समय रहते हल नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में यह और भी गंभीर हो सकती है।

अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के पास मानक

हाई कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, शैक्षणिक संस्थानों, हॉस्पिटल, प्रोजेक्ट भवन, नेपाल हाउस और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों की 100 मीटर परिधि में ध्वनि उत्सर्जन के मानक निर्धारित किए गए हैं। इसके तहत सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 50 डेसिबल और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 40 डेसिबल तक निर्धारित हैं। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में ध्वनि उत्सर्जन मानक सुबह 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक 75 डेसिबल रहेगा और रात्रि 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 70 डेसिबल निर्धारित है। वहीं व्यावसायिक क्षेत्र में ध्वनि उत्सर्जन सुबह 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक 65 डेसिबल और रात्रि 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 55 डेसिबल निर्धारित है। आवासीय क्षेत्र में ध्वनि उत्सर्जन का मानक 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक 55 डेसिबल और रात्रि 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसिबल निर्धारित है।

सड़कों के किनारे हैं बड़े हॉस्पिटल

शहर में अधिकतर बड़े हॉस्पिटल सड़कों के किनारे स्थित हैं, जहां गाड़ियों का शोर मरीजों के लिए परेशानी का कारण बन रहा है। इसके अलावा त्योहारों के दौरान लाउड स्पीकर से होने वाला शोर और भी ज्यादा कष्टकारी हो जाता है, जिससे मरीजों की हालत और भी खराब हो जाती है। कई मरीज विशेषकर दिल की बीमारियों से ग्रस्त तेज आवाज से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। कार्डियोलॉजिस्ट की मानें तो मरीजों को और अधिक मानसिक व शारीरिक तनाव का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा साउंड पॉल्यूशन से हार्ट अटैक और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है।

साइलेंस जोन बनाने का था आदेश

तत्कालीन हेल्थ सेक्रेटरी डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी ने झारखंड स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को पत्र लिखकर हॉस्पिटलों के आसपास साइलेंस जोन बनाने का आदेश दिया था। इस आदेश के तहत हॉस्पिटलों के 200 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के लाउड स्पीकर के उपयोग पर रोक लगाने को कहा था। इसके साथ ही गाड़ियों के शोर को भी नियंत्रित करने के लिए उपाय करने का निर्देश दिया था। लेकिन, आज तक इस पर गंभीरता से काम नहीं किया गया।

एक्ट के तहत कार्रवाई का है प्रावधान

साउंड पॉल्यूशन को अपराध माना जाता है और इसके उल्लंघन पर सजा के साथ जुर्माना हो सकता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण सुरक्षा नियम के तहत भी हॉस्पिटल और शैक्षणिक संस्थानों के आसपास अधिक साउंड पॉल्यूशन पर कड़ी सजा का प्रावधान है। इसे लेकर 2019 में अपर बाजार के सोशल एक्टिविस्ट ज्योति शर्मा ने उपायुक्त से शिकायत की थी। इसमें उन्होंने सदर हॉस्पिटल के बाहर एक्टिविटी को लेकर भी सवाल उठाए थे। उन्होंने बताया था कि अलबर्ट एक्का चौक पर आए दिन कल्चरल और पॉलिटिकल एक्टिविटी का आयोजन किया जाता रहता है। इससे हमेशा साउंड पॉल्ययूशन होता है। इस पर गंभीरता से एक्शन लेने की जरूरत है। इसके बावजूद आज तक वहां पर बड़े आयोजन किए जाते हैं। वहीं लाउड स्पीकर का शोर कम ही नहीं हो रहा है।

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