रांची : झारखंड के वनों में पर्यटन को बढ़ावा देने और वन्यजीव संरक्षण को नई दिशा देने के लिए एक बड़ी पहल की जा रही है। पलामू टाइगर रिजर्व (PTR) के अंतर्गत बरवाडीह पश्चिम वन प्रक्षेत्र के पुटुआगढ़ जंगल में टाइगर सफारी (Tiger Safari in Palamu Tiger Reserve) की स्थापना का प्रस्ताव तैयार किया गया है। यह सफारी करीब 300 हेक्टेयर भूमि पर विकसित की जाएगी और इसे बिहार के राजगीर जू सफारी की तर्ज पर बनाया जाएगा।
टाइगर सफारी बरवाडीह : वन्यजीव पर्यटन को मिलेगा नया आयाम
इस प्रस्तावित टाइगर सफारी प्रोजेक्ट का सर्वेक्षण कार्य पूरा कर लिया गया है। बरवाडीह-मंडल रोड से सटे पुटुआगढ़ जंगल को इस परियोजना के लिए चिह्नित किया गया है। यहां बाघों के लिए सुरक्षित आवास, पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधा युक्त विजिटर्स सेंटर, इंटरप्रिटेशन जोन, वॉच टॉवर और अन्य संरचनाओं का निर्माण प्रस्तावित है।
राज्य सरकार द्वारा आयोजित होने वाली टाइगर फाउंडेशन की बैठक में इस परियोजना को औपचारिक रूप से प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) को भी स्वीकृति हेतु प्रस्ताव भेजा गया है, जो भारत में बाघ संरक्षण से संबंधित शीर्ष संस्था है।
झारखंड में पहला टाइगर सफारी : रोजगार और पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
यह प्रस्तावित सफारी झारखंड का पहला टाइगर सफारी होगा, जिससे न केवल बाघों के संरक्षण को मजबूती मिलेगी, बल्कि स्थानीय लोगों को भी रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे। इसके साथ ही, यह परियोजना राज्य में वन्यजीव पर्यटन (Wildlife Tourism in Jharkhand) को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में सहायक होगी।
पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों की उपस्थिति और महत्व
पलामू टाइगर रिजर्व देश के सबसे पुराने टाइगर रिजर्व में से एक है, जिसे 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के अंतर्गत अधिसूचित किया गया था। यहां बाघों की संख्या को लेकर समय-समय पर चिंता जताई जाती रही है, लेकिन इस क्षेत्र की जैव विविधता अब भी राज्य की सबसे समृद्ध वन संपदाओं में गिनी जाती है।
प्रस्तावित टाइगर सफारी की प्रमुख विशेषताएं
- कुल क्षेत्रफल : लगभग 300 हेक्टेयर
- स्थान : पुटुआगढ़ जंगल, बरवाडीह-मंडल रोड, पश्चिम वन प्रक्षेत्र
- मॉडल : राजगीर जू सफारी, बिहार की तर्ज पर
- उद्देश्य : बाघ संरक्षण, वन्यजीव पर्यटन, स्थानीय रोजगार सृजन
- स्वीकृति प्रक्रिया : NTCA एवं राज्य टाइगर फाउंडेशन की मंजूरी आवश्यक
यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो यह परियोजना न केवल झारखंड में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी, बल्कि राज्य के पर्यटन मानचित्र पर भी एक नई पहचान बनाएगी। पर्यावरण संतुलन, इकोसिस्टम और स्थानीय अर्थव्यवस्था—तीनों को यह परियोजना सीधे तौर पर प्रभावित करेगी।