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जमशेदपुर पूर्वी में गरमायी राजनीति, BJP प्रत्याशी पूर्णिमा पर व्यक्तिगत टिप्पणी के बाद महिला वोटरों में डॉ. अजय के खिलाफ नाराजगी

पूर्णिमा ने अपने समर्थन में स्थानीय समुदायों को जोड़ने का प्रयास किया है, जिससे उनकी उपस्थिति और प्रभाव बढ़ता जा रहा है।

by Anand Mishra
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जमशेदपुर : झारखंड की जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट इस बार राजनीतिक हलचल का केंद्र बन गई है। यहां भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की पुत्रवधू पूर्णिमा साहू और कांग्रेस के पूर्व सांसद डॉ. अजय कुमार आमने-सामने हैं। यह चुनाव केवल राजनीतिक लड़ाई नहीं, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण के मुद्दे पर भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर चुनावी मुकाबला इस बार केवल राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों के बीच भी है। महिलाओं की आवाज़ को दबाने वाली टिप्पणियों के खिलाफ उठने वाली आवाज़ें यह दिखाती हैं कि समाज अब बदलाव की ओर अग्रसर है।

भाजपा की चुनावी रणनीति


भाजपा प्रत्याशी पूर्णिमा साहू अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक जनसंपर्क और जनसभाओं का आयोजन कर रही हैं। उनका अभियान महिलाओं के अधिकारों और समाज में उनकी भूमिका को मजबूत करने पर केंद्रित है। पूर्णिमा ने अपने समर्थन में स्थानीय समुदायों को जोड़ने का प्रयास किया है, जिससे उनकी उपस्थिति और प्रभाव बढ़ता जा रहा है।

अजय कुमार का विवादित बयान


वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. अजय कुमार का बयान उन्हें विवादों में घसीट रहा है। उन्होंने पूर्णिमा साहू पर टिप्पणी करते हुए उन्हें ‘अबला’ और पुरुषों पर निर्भर बताया, जिससे राज्य की महिलाओं में गहरा आक्रोश उत्पन्न हुआ है। उनके इस बयान ने महिलाओं की आत्मनिर्भरता और उनकी सामाजिक भूमिका पर सवाल उठाया है, जो आज के आधुनिक समाज में अत्यंत संवेदनशील विषय है।

महिलाओं का प्रतिरोध


जमशेदपुर और पूरे झारखंड में महिलाओं ने इस बयान का विरोध किया है। कई स्थानों पर महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं और अजय कुमार के पुतले फूंक रही हैं। यह प्रदर्शन न केवल एक प्रत्याशी के खिलाफ है, बल्कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों के प्रति एक मजबूत संदेश भी है। स्थानीय महिला संगठनों का मानना है कि ऐसे बयान समाज में महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय


विश्लेषकों का मानना है कि अजय कुमार का यह विवादित बयान कांग्रेस के लिए गंभीर नुकसान का कारण बन सकता है। ना केवल यह बयान उनके खिलाफ जनभावनाओं को भड़का रहा है, बल्कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और सहयोगी दलों जैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और राजद की चुप्पी भी आश्चर्यचकित करने वाली है। चुनाव के इस महत्वपूर्ण समय में इन दलों की प्रतिक्रिया की कमी उनकी चुनावी संभावनाओं को और कमजोर कर सकती है।

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