रांची: मनी लॉन्ड्रिंग मामले में घिरी झारखंड की निलंबित आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल के खिलाफ अब तक राज्य सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति (Prosecution Sanction) नहीं दी है। जबकि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 120 दिन पहले सरकार से इस बाबत अनुमति मांगी थी।
सरकार की ओर से जब इतने लंबे समय तक कोई जवाब नहीं आया, तो अब ED ने ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर करते हुए सरकार की चुप्पी को ‘मानी हुई स्वीकृति (Deemed Sanction)’ मानने का अनुरोध किया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला बना आधार, ED ने दी मिसालें
नवंबर 2024 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए ED ने कहा है कि किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा शुरू करने के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक है, लेकिन यदि 120 दिन के भीतर कोई निर्णय नहीं दिया जाता, तो इसे स्वीकृति मान लिया जाना चाहिए।
ED ने कोर्ट में यह भी तर्क रखा कि उन्होंने पूजा सिंघल के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नवंबर 2024 में मांगी थी, लेकिन सरकार की ओर से कोई भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया, जो कानूनन ‘मौन स्वीकृति’ मानी जानी चाहिए।
ट्रायल कोर्ट में दी गई याचिका, रोकने की मांग से इंकार
ED ने अपनी याचिका में कोर्ट से गुज़ारिश की है कि सरकार की चुप्पी को नजरअंदाज न किया जाए और पूजा सिंघल के खिलाफ चल रही कानूनी कार्रवाई को रोका न जाए। इसके समर्थन में ईडी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और पूर्व उदाहरणों को कोर्ट के समक्ष रखा है। ED का तर्क है कि यदि इस तरह के मामलों में सरकारें बिना जवाब दिए समय व्यतीत करती रहीं, तो इससे कानून का दुरुपयोग होगा और न्यायिक प्रक्रिया बाधित होगी।
पूजा सिंघल मामला: क्या है पूरा प्रकरण?
IAS पूजा सिंघल पर मनी लॉन्ड्रिंग के गंभीर आरोप हैं। ED ने इस मामले में छापेमारी के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी भी जब्त की थी। वह झारखंड में खनन विभाग से जुड़ी कई गतिविधियों के चलते जांच के दायरे में आई थीं। इस केस को लेकर राज्य और केंद्र स्तर पर लंबे समय से जांच चल रही है।
अब आगे क्या?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट सरकार की चुप्पी को ‘मानी हुई स्वीकृति’ मानते हुए पूजा सिंघल के खिलाफ मुकदमे को आगे बढ़ाने की इजाजत देता है या नहीं। इस मामले का असर आने वाले दिनों में झारखंड की प्रशासनिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी देखने को मिल सकता है।
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