जमशेदपुर: पुरी मठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती रविवार को आदित्यपुर स्थित आदित्य सिंडिकेट कॉलोनी पहुंचे, जहां वे एक दर्शन, संगोष्ठी एवं दीक्षा कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर शंकराचार्य ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीतियों पर आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी और योगी दोनों ने उन्हें कमजोर करने की कोशिश की है।
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी उनके विरोध में एक “आतंकवादी” को शंकराचार्य की उपाधि प्रदान कर उसे सुरक्षा देने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि योगी आदित्यनाथ, जो कभी उनके चरण स्पर्श करते थे, अब उनके विरुद्ध हो गए हैं। उनके इस बयान से यह स्पष्ट है कि वर्तमान राजनीति और धार्मिक संगठनों में विचारधारात्मक विरोध स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ रहा है।
राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह पर असंतोष
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में साधु-संतों को उचित सम्मान न मिलने पर शंकराचार्य ने गहरा असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि इस ऐतिहासिक आयोजन के मंच पर केवल राजनीतिक पदाधिकारियों को स्थान दिया गया, जबकि भारत के साधु-संतों को दर्शकों के बीच, 40 फीट नीचे प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठाया गया। उनका कहना था कि इस प्रकार का आयोजन यह दर्शाता है कि साधु-संतों का स्थान नेताओं से कमतर माना जा रहा है, जोकि धार्मिक मूल्यों के विपरीत है।
राम मंदिर निर्माण पर राजनीतिक प्रभाव का आरोप
राम मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा के विषय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा पर सवाल उठाते हुए स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि प्रधानमंत्री ने इसे लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पूरा करवाया, जिसे विपक्ष एक राजनीतिक चाल मान रहा है। स्वामी जी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि भगवान राम का राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री ने इस कदम से भाजपा का शासन बरकरार रखने की योजना बनाई, लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा को अयोध्या, नासिक, और रामेश्वरम जैसी पवित्र स्थलों पर भी हार का सामना करना पड़ा है।
सोमनाथ मंदिर और वर्तमान परिस्थिति की तुलना
स्वामी निश्चलानंद ने सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा सोमनाथ मंदिर की स्थापना का उदाहरण देते हुए कहा कि पटेल ने धार्मिक मामलों में संतों और जनता की सहमति से कार्य किया था, जबकि वर्तमान स्थिति में राजनेता धार्मिक आयोजनों को अपने लाभ के लिए कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज के भारत और उस समय के भारत में काफी अंतर आ चुका है, और वर्तमान में धार्मिक कार्यों का राजनीतिक इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है।
उनके अनुसार, आज भारत में राजनीतिक हित धार्मिक आयोजनों को प्रभावित कर रहे हैं, जोकि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और संतों की मान्यता के विपरीत है। शंकराचार्य ने यह भी कहा कि साधु-संतों का कर्तव्य है कि वे धर्म के मूल्यों की रक्षा करें और अपने अधिकारों के लिए खड़े हों।
इस प्रकार, स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने वर्तमान धार्मिक और राजनीतिक तंत्र पर गहरा असंतोष व्यक्त किया, जिससे यह साफ हो जाता है कि धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व के बीच विचारधारात्मक मतभेदों की खाई बढ़ती जा रही है।