मुंबई : वैश्विक व्यापार तनाव और अमेरिका में मंदी की बढ़ती आशंकाओं के बीच सोमवार को भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली। बेंचमार्क सूचकांकों में यह गिरावट इतनी गहरी थी कि बाजार खुलते ही सेंसेक्स में 3,939.68 अंक की गिरावट आई और यह 71,425.01 पर आ गया। वहीं, निफ्टी भी 1,160.8 अंक गिरकर 21,743.65 पर पहुंच गया। इस गिरावट के साथ ही बाजार में निवेशकों को तगड़ा नुकसान हुआ और बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) पर सूचीबद्ध सभी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 19 लाख करोड़ रुपये घट गया।
आईटी कंपनियों को सबसे अधिक नुकसान
इस भारी गिरावट में आईटी कंपनियां सबसे अधिक प्रभावित हुईं। जिन कंपनियों का अधिकांश राजस्व अमेरिका से आता है, उन्हें करीब 7 प्रतिशत का नुकसान हुआ है। इसके अलावा, स्मॉल-कैप और मिड-कैप कंपनियों में भी गिरावट आई, जो क्रमशः 6.2 प्रतिशत और 4.6 प्रतिशत के आसपास रही। ये आंकड़े निवेशकों के लिए एक चेतावनी की तरह हैं, क्योंकि वैश्विक घटनाओं के असर से भारतीय बाजार भी प्रभावित हो रहे हैं।
कोविड-19 संकट के बाद सबसे बड़ी गिरावट
यह गिरावट भारतीय शेयर बाजार के लिए कोविड-19 महामारी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है। मार्च 2020 में कोविड-19 के कारण लगाए गए वैश्विक लॉकडाउन के चलते भारतीय शेयर बाजारों में भारी गिरावट आई थी। जनवरी में सेंसेक्स 42,273 अंक से गिरकर 25,638 अंक तक पहुंच गया था, जो कि 39 प्रतिशत की गिरावट थी। इसके बाद, बाजारों ने धीरे-धीरे सुधार दिखाया था, लेकिन वर्तमान संकट ने फिर से निवेशकों के लिए चिंता का विषय बना दिया है।
2008 का वैश्विक वित्तीय संकट
भारतीय शेयर बाजार में इस तरह की गिरावट पहली बार नहीं हुई है। 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट ने भारतीय बाजारों को बुरी तरह प्रभावित किया था। उस समय लेहमैन ब्रदर्स के पतन और अमेरिका में सबप्राइम मॉर्गेज संकट के कारण सेंसेक्स में 60 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई थी। जनवरी 2008 में सेंसेक्स 21,206 अंक पर था, जो अक्टूबर तक गिरकर 8,160 अंक पर पहुंच गया था।
डॉट-कॉम बबल और एशियाई वित्तीय संकट
1990 के दशक के अंत में दो और महत्वपूर्ण घटनाएं भारतीय बाजारों पर भारी पड़ीं। पहला, 2000 में डॉट-कॉम बबल के फूटने के कारण तकनीकी शेयरों की कीमतें गिरीं। फरवरी 2000 में सेंसेक्स 5,937 अंक पर था, लेकिन अक्टूबर 2001 तक यह गिरकर 3,404 अंक पर आ गया, जो 43 प्रतिशत की गिरावट थी। इसके बाद, 1997 में एशियाई वित्तीय संकट ने भारतीय बाजारों को प्रभावित किया था। इस संकट के कारण, सेंसेक्स 28 प्रतिशत से अधिक गिरकर 3,300 अंकों तक आ गया था।
हर्षद मेहता घोटाला
1992 में हर्षद मेहता द्वारा किए गए शेयर बाजार घोटाले ने भारतीय बाजारों में बड़े पैमाने पर गिरावट का कारण बना। इस धोखाधड़ी के कारण शेयर की कीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ाया गया था, जिससे बाजार में एक झटका लगा। अप्रैल 1992 से लेकर अप्रैल 1993 तक सेंसेक्स में 56 प्रतिशत की गिरावट आई, जो 4,467 अंकों से घटकर 1,980 अंक तक पहुंच गई थी।