एंटरटेनमेंट डेस्क : फिल्मों में दिखने वाले बर्फ से ढकी चोटियां, सर्द हवाएं, घनी हरियाली, बादलों का हुजूम, और इन सबके बीच गर्म कपड़ों में लिपटे हीरो-हीरोइन, सुनने में कितना रोमांटिक लगता है। बेशक पहाड़ों में शूटिंग करना फिल्म स्टार्स और क्रू के लिए एक चुनौतीपूर्ण लेकिन रोमांचक अनुभव होता है, पर इसका दूसरा पहलू भी है।
पहाड़ों में शूटिंग, लोकेशंस की ऊंचाई, मौसम की अनिश्चितता और दुर्गम रास्ते इसे मुश्किल बनाते हैं। अक्सर, पहाड़ी इलाकों में ऑक्सीजन की कमी और थकान से फिल्म स्टार्स को काम करने में कठिनाई होती है। वहीं, ठंडा मौसम या अचानक बदलता मौसम शूटिंग को स्थगित करने पर मजबूर कर सकता है। इसके अलावा, क्रू को भारी उपकरणों को पहाड़ों तक पहुंचाना पड़ता है, जो एक बड़ा लॉजिस्टिक चैलेंज बन जाता है।

पर्याप्त सुविधाओं की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है, जैसे कि खाने-पीने का सामान और मेडिकल सुविधा की अनुपलब्धता। बिजली की आपूर्ति और उपकरणों को चार्ज करने में भी कठिनाई हो सकती है। इन सबके बावजूद, पहाड़ों की खूबसूरती और प्राकृतिक दृश्यों की वजह से कई निर्देशक इन चुनौतियों को स्वीकार करते हैं। इन कठिनाइयों के बावजूद, अगर योजना और तैयारी सही हो, तो पहाड़ी लोकेशंस फिल्मों में एक्सेप्शनल ब्यूटी और ऑथेंटिसिटी जोड़ते हैं। संक्षेप में, पहाड़ों में शूटिंग करना मुश्किल जरूर है, लेकिन ये फिल्म के अनुभव को दर्शकों के लिए और खास बना देता है।
लाइन प्रोड्यूसर अनिल कायस्थ संग बातचीत
इसी सिलसिले में Photon news ने हिमाचल प्रदेश के लाइन प्रोड्यूसर अनिल कायस्थ से बातचीत की। अनिल ने हिमालय की गोद में बसे हिमाचल प्रदेश के कुछ शूटिंग लोकेशंस जैसे मनाली, लाहौल-स्पीति, शिमला में शूटिंग प्रक्रिया पर कई दिलस्चप बातें साझा की। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में शूटिंग करना प्लान पर निर्भर करता है। अगर आपका रहना, खाना, शूटिंग टाइम, लोकेशंस, इक्विपमेंट्स, ट्रेवल और पेमेंट्स, सब कुछ पहले से निर्धारित होते हैं, तो दिक्कत नहीं होती है। चूंकि पहाड़ों में मौसम बेवक्त बदलता है इसलिए इसपर नजर रखना और शूटिंग शेड्यूल उसके हिसाब से चेंज करना जरूरी होता है। आप प्रकृति से खेल नहीं सकते हैं।

चाहे वो फिल्म का स्पॉटबॉय हो, डीओपी, कैमरामैन हो या फिर एक्टर्स सभी अपने कॉल टाइम यानि अपने-अपने रोल की शूटिंग का टाइम, काफी प्लांड-वे में फॉलो करते हैं। अनुशासन की बात करें तो हर एक्टर काफी पंक्चुअल होता है। अनिल कहते हैं, “मैंने अमिताभ बच्चन, आमिर खान, सोनू सूद और अन्य हीरो-हीरोइन के साथ काम किया है, सभी अपने कॉल-टाइम को स्ट्रिक्टली फॉलो करते हैं। सभी आर्टिस्ट्स खुद को काफी फिजिकली फिट रखते हैं।”
जब 102 डिग्री फीवर में आमिर ने रोहतांग में पूरी की शूटिंग
अनिल ने अपनी एक फिल्म शूटिंग का उदाहरण देते हुए कहा- “फिल्म गुलाम की शूटिंग के वक्त आमिर खान को 102 डिग्री बुखार था और हमें फिल्म के एक गाने की शूटिंग 13058 फीट ऊंचे रोहतांग पास पर करनी थी। आमिर को सिर्फ एक शर्ट पहनकर यह सीन शूट करना था। उन्होंने बहुत तेज फीवर में भी इतने ऊंचे पहाड़ पर जहां बर्फ की दीवारें थी, वहां अपने सीन की शूटिंग पूरी की।”

मालूम हो, 1998 में रिलीज फिल्म गुलाम के गाने ‘जादू है कैसा ये जादू’ में आमिर खान ने वाइट टीशर्ट पहने तेज बुखार में इस गाने की शूटिंग की थी। जब फिल्म की शूटिंग हुई थी तब अटल टनल नहीं बना था। उन दिनों रोहतांग जैसे लोकेशंस पर फिल्म शूट करना आज के मुकाबले कहीं ज्यादा मुश्किल होता था। एल्टीट्यूड सिकनेस, जुकाम, बुखार, कैमरा फ्रीज हो जाना, अचानक बर्फबारी ये सब प्लान को खराब कर देते थे। हालांकि, अब मौसम और इक्विपमेंट्स को लेकर तकनीकि विकास से काफी मदद मिल गई है।
सुबह 4 बजे शुरू होती है दिनचर्या
पहाड़ों पर फिल्म की शूटिंग के लिए काफी जल्दी उठना पड़ता है। अनिल बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग के वक्त सभी की दिनचर्या सुबह 4 बजे शुरू हो जाती है। “हमारा वेकअप कॉल सुबह 4 बजे का होता है, 5-5:30 क्रू निकलती है और फिर 8 बजे तक हम रोहतांग, लाहौल या अन्य शूटिंग लोकेशन पर पहुंचकर कैमरा रोल करते हैं।”
पहले के मुकाबले आज कितना आसान है पहाड़ों में शूटिंग?
“आजकल पेपरवर्क पहले हो जाता है और उसमें शेड्यूल बन जाता है। बीच में अगर बारिश, या तूफान आ जाये तो हम सेकंड डे शूट पूरा करने की कोशिश करते हैं। कई बार जब शूटिंग से जल्दी फ्री हो जाते हैं तो दूसरे सीन की रिहर्सल करते हैं। बड़े डायरेक्टर्स सिर्फ उतनी ही फिल्म शूटिंग करते हैं जितना उन्होंने प्लान किया है। जैसे अगर शूटिंग 4 बजे खत्म होती है तो वे पैक अप करने को जरूर बोलते हैं, पर बाकि के एक दो घंटे दूसरे सीन की रिहर्सल की प्लानिंग करते हैं। पहले के दिनों में जब मोबाइल फोन नहीं होते थे तब हम पूरे शेड्यूल के लिए टेलीग्राम का इंतजार करते थे।”

पहाड़ों में शूटिंग का पीक टाइम
स्क्रिप्ट और फिल्म डेडलाइन की जरूरत को देखते हुए पहाड़ों में फिल्म शूटिंग के लिए डेट्स चुने जाते हैं। हालांकि, मई-जून के महीने में जब गर्मी होती है, टूरिस्ट सीजन में और बारिश के मौसम में जब लैंडस्लाइड्स-बाढ़ का खतरा होता है, उस वक्त फिल्म शूटिंग अवॉयड की जाती है। इसके अलावा जनवरी से लेकर अप्रैल तक और फिर सितंबर से लेकर दिसंबर तक, पहाड़ों में फिल्म क्रू की बहार रहती है। कोशिश की जाती है कि टूरिस्ट्स सीजन में कम शूटिंग हो, पर ऐसा नहीं होने पर क्राउड मैनेज करने के लिए लोग होते हैं।
जब ‘सिस्सू’ में हुई थी ‘सपने’ फिल्म की शूटिंग
एक और किस्सा बताते हुए अनिल ने बताया कि कैसे टनल बनने से पहले अरविंद स्वामी, काजोल, प्रभुदेवा स्टारर फिल्म ‘सपने’ शूट की गई थी। इस फिल्म की शूटिंग सिस्सू में हुई थी। फिल्म क्रू सुबह 4 बजे मनाली से रवाना होती थी और फिर सुबह 7 बजे तक हम ‘मढ़ी’ पहुंचते थे जहां सभी नाश्ता करते थे। उन दिनों रास्ते अच्छे नहीं थे। फिर हम सिस्सू में 11 बजे पहुंचकर शूटिंग करते थे। 2 -3 घंटे में जितना होता था उतनी शूटिंग करते थे फिर अंधेरा होते-होते पैक अप कर वापस आते थे। उस वक्त टनल नहीं था, रोहतांग क्रॉस करना पड़ता था और वहां कभी भी बर्फबारी हो जाती है।
हेवी स्नोफॉल से घिरा था ‘हीरो’
अनिल बताते हैं, “सूरज पंचोली और अथिया शेट्टी के साथ फिल्म ‘हीरो’ के लिए ‘कोठी’ में फिल्म की शूटिंग हुई थी। उस वक्त हेवी स्नोफॉल हो रही थी, और स्क्रिप्ट के मुताबिक यही चाहिए था। ऐसे में फिल्म की शूटिंग स्नोफॉल में ही हुई, पर जब रिस्क बढ़ जाता था तब क्रू पैक-अप करती थी और दूसरे दिन फिर से शूटिंग होती थी। ऐसे मौकों पर फिल्म निर्देशक भी हमारे सुझाव लेते थे। उन्होंने किसी को कभी रिस्क में नहीं डाला।” ऐसे हालातों में कैसे फिल्म की शूटिंग होगी, इसका पूरा इंतजाम किया जाता है। स्नो पर चलने वाली गाड़ियां, स्नो हटाने के लिए इक्विपमेंट्, हीटर सभी कुछ लोकेशन पर हमेशा मौजूद रहता है।

साउथ की फिल्म क्रू के लिए क्या होती है परेशानी?
सभी जानते हैं कि साउथ इंडिया में गर्म मौसम होता है। उनके लिए पहाड़ों में खून जमा देने वाली ठंड और बर्फ में शूट करना थोड़ा मुश्किल होता है। बातों ही बातों में पता चला कि साउथ के स्पॉटबॉयज के लिए हिमाचल जैसे ठंडे इलाकों में चप्पल और लुंगी में काम करना दिक्कतों से भरी होती है। उन्हें बूट्स दिए जाते हैं, पर सुबह 4 बजे उठकर सभी के लिए चाय बनाना आसान बात नहीं होती है। ‘रोजा’ फिल्म के बाद हिमाचल में फिल्म शूटिंग की फौज आ गई थी। हालांकि, अब ज्यादातर साउथ मूवीज बर्फीले लोकेशंस के लिए अब्रॉड जा रहे हैं।
सरकार का कितना सपोर्ट?
पहले के वक्त में पहाड़ों में शूटिंग करना हर मायने से मुश्किल था। पर वक्त के साथ यह भी बदल गया है। अब सरकार भी फिल्म इंडस्ट्री के बढ़ते रुझान को देखते हुए कई चीजों का विकास किया है जैसे सड़क और फाइव स्टार होटल्स। कोई भी फिल्म यहां बनती है तो उसका 18 प्रतिशत जीएसटी सीधे सरकार को जाती है। फिलहाल हिमाचल में सब्सिडी पर अभी काम अटका हुआ है। उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में फिल्म की टीम्स को सब्सिडी मिलती है, जो हिमाचल में अभी नहीं है। इसपर काम चल रहा है।
सारा-आदित्य की आने वाली फिल्म के लिए बुक की पूरी ट्रेन
हाल ही में डायरेक्टर अनुराग बसु की फिल्म ‘मेट्रो इन दिनों’ की शूटिंग शिमला लोकेशन पर हुई है। इसके लिए पूरे एक दिन टॉय ट्रेन बुक किया गया था। फिल्म में सारा अली खान और आदित्य रॉय कपूर मुख्य भूमिका में हैं। वहीं अक्षय कुमार-परिणीति चोपड़ा स्टारर ‘केसरी’ स्पीति स्थित काजा में हुई थी। स्पीति में बहुत तेज हवाएं चलती है। काफी ड्राई विंड होती हैं। लेकिन, वहां लंबे दिन होते हैं, जो कि फिल्म शूटिंग के अनुकूल होता है। शूटिंग के लिए ज्यादा समय मिलता है।
रहने की क्या होती है व्यवस्था?
कृष, एनिमल, फना, जब वे मेट, योद्धा, आरण्यक, दरार, ब्रह्मास्त्र, लाल सिंह चड्ढा जैसी कई फिल्मों की शूटिंग हिमाचल के कुल्लू-मनाली में हुई है। फिल्म की शूटिंग के दौरान ‘Taj Baragarh Resort & Spa IHCL SeleQtions’ में स्टार्स के रहने की व्यवस्था रखी गई थी। रिजॉर्ट के ओनर नकुल खुल्लर से बातचीत में उन्होंने बताया कि फिल्म क्रू काफी प्रोफेशनल होते हैं। यहां के मौसम में उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी न हो इसका पूरा ख्याल रखा जाता है।
फोटो: फिल्म दरार में जूही चावला के साथ रिजॉर्ट ओनर नकुल खुल्लर

मजेदार किस्सा साझा करते हुए नकुल ने बताया कि जूही चावला, अरबाज खान, ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म ‘दरार’ में दिखाया गया घर दरअसल नकुल खुल्लर के दूसरे होटल रायसन स्थित ‘Taj Ama Stays & Trails Ramgarh Heritage Villa’ की है। फिल्म दरार में खुद ओनर नकुल खुल्लर ने डॉक्टर के रोल में अदाकारी भी की थी। फिल्म के लिए पूरे होटल को बुक किया गया था। अंग्रेजों के जमाने से चल रहा ये फाइव स्टार हेरिटेज प्रॉपर्टी, कई फिल्म आर्टिस्ट्स के सिर्फ रहने के लिए ही नहीं बल्कि फिल्म की शूटिंग सेट के तौर पर भी इस्तेमाल किया गया है। देव आनंद-सुचित्रा सेन अभिनीत फिल्म ‘बॉम्बे का बाबू’ फिल्म की शूटिंग के दौरान, यह होटल डेढ़ महीने के लिए बुक्ड था।
पहाड़ों में होने वाली परेशानियों को जान अब आपको भी लगता होगा कि ऐसे मौसम में काम करना आसान नहीं होता। पर्दे पर बर्फीली वादियों में जब हीरोइन्स स्लीवलेस में नजर आती हैं तो हर किसी के दिमाग में उनका ग्लैमरस लुक सबसे पहले आता है। उम्मीद है, पर्दे के पीछे की ये सच्चाई जानकार अब आप भी समझ गए होंगे की पहाड़ों में शूटिंग करना आसान नहीं होता। हर चीज की प्लानिंग, तैयारी और डिसिप्लिन होती है, जिसे एक्टर्स बखूबी निभाते हैं।


