सेंट्रल डेस्क: पश्चिम बंगाल के संसदीय कार्य मंत्री सोवंदेब चट्टोपाध्याय ने कहा कि राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों (Bills) पर चर्चा के लिए अधिकारियों को तलब करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कहा था कि उन्होंने कुछ लंबित विधेयकों को मंजूरी देने से पहले विभिन्न विभागों के अधिकारियों से बैठक की मांग की है।
विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते
चट्टोपाध्याय ने स्पष्ट किया, “संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। यदि किसी विधेयक में कानूनी अड़चन हो, तो राज्यपाल सरकार को पत्र लिख सकते हैं। लेकिन संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि वे अधिकारियों को तलब कर सकते हैं या चर्चा कर सकते हैं। मैंने संविधान कई बार पढ़ा है।”
राज्यपाल की भूमिका पर उठे सवाल–विधेयकों पर विवाद
राज्य विधानसभा के अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद यह तथ्य सामने आया है कि 2016 से अब तक पश्चिम बंगाल विधानसभा द्वारा पारित 23 विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली है।
तमिलनाडु मामले में अदालत ने दिए निर्देश
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को बड़ी राहत देते हुए 10 ऐसे विधेयकों को मंजूरी दी थी जिन्हें राज्यपाल आर एन रवि ने राष्ट्रपति के विचारार्थ रोक कर रखा था। अदालत ने सभी राज्यपालों के लिए विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश भी दिया है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इस फैसले को “भारत के सभी राज्यों की जीत” बताया। पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने उम्मीद जताई कि राज्यपाल अब सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन करेंगे।
राजभवन का बयान – राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयक
राजभवन द्वारा बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया कि राज्यपाल ने 2024 और 2025 के बीच 11 विधेयकों को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा है, जिनमें 10 विश्वविद्यालयों से संबंधित विधेयक और ‘अपराजिता विधेयक’ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, राजभवन ने कई अन्य विधेयकों पर राज्य सरकार से अतिरिक्त जानकारी मांगी है और दावा किया है कि सरकार की ओर से अब तक उचित प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई है।