Home » 134वें सृजन संवाद में रचनाकारों ने साझा किए अपने लेखन से जुड़े अनुभव

134वें सृजन संवाद में रचनाकारों ने साझा किए अपने लेखन से जुड़े अनुभव

by Rakesh Pandey
134th Srijan Samvad
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

जमशेदपुर : शहर की साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ‘सृजन संवाद’ की 134वीं संगोष्ठी का (134th Srijan Samvad) आयोजन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्ट्रीमयार्ड और फेसबुक लाइव पर किया गया। शुक्रवार शाम छह बजे कवि-पत्रकार सारंग उपाध्याय तथा कहानीकार-उपन्यासकार अनघ शर्मा प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. नेहा तिवारी एवं डॉ मंजुला मुरारी ने किया।

वैभव मणि त्रिपाठी ने स्ट्रीमयार्ड संभाला। इस मौके पर ‘सृजन संवाद’ कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. विजय शर्मा ने बताया कि संस्था नए और स्थापित दोनों रचनाकारों को मंच उपलब्ध कराती है। इसी सिलसिले में संगोष्ठी में दो ऐसे उपन्यासकार उपस्थित हुए, जिनका पहला उपन्यास प्रकाशित हुआ है। सृजन संवाद के मंच से दोनों रचनाकारों ने अपनी लेखन यात्रा दर्शकों/श्रोताओं से साझा की। मस्कट से अनघ शर्मा तथा भोपाल से सारंग उपाध्याय अपने उपन्यास अंश का पाठ करते हुए अपनी लेखन यात्रा के बारे में बताया। गोष्ठी में पाटकर कॉलेज, गोरेगांव के छात्र भी जुड़े थे।

सारंग उपाध्याय के नए उपन्यास पर हुई चर्चा (134th Srijan Samvad)

डॉ. नेहा तिवारी ने सारंग उपाध्याय का परिचय देते हुए बताया कि वे न केवल कवि हैं, वरन उनके उपन्यास में भी कविताएं पिरोई हुई हैं। उपन्यास ‘सलाम बांम्बे वाया वर्सावा डोगरी’ मुंबई के एक खास तबके के जीवन की उथल-पुथल को दिखाता है। सारंग उपाध्याय ने बताया कि यह उपन्यास पहले तद्भव पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। पत्रिका के संपादक अखिलेश के उत्साहजनक शब्दों से प्रेरित होकर इसे किताब की शक्ल में राजकमल ने प्रकाशित किया है।

मुंबई में काफी समय बिताने और वहां की जिंदगी को करीब से देखने के बाद उन्होंने यह उपन्यास लिखा है, जिसे पाठकों की भरपूर प्रशंसा मिल रही है। उपन्यास मछुआरों के जीवन पर केंद्रित है। चूंकि, सारंग पत्रकार हैं वे उसी नजरिए से चीजों को देखते हैं।

साथियों ने उन्यास लिखने के लिए किया प्रेरित :अनघ शर्मा

अगले वक्ता अनघ शर्मा का परिचय देते हुए डॉ. मंजुला मुरारी ने बताया कि अनघ शर्मा मूलत: कहानीकार हैं। उनके दो कहानी संग्रह ‘आवाजें कांपती रही’ तथा ‘धूप की मुरेड़’ प्रकाशित हैं। ‘नीली दीवार की परछाइयां’ उनका पहला उपन्यास है। शिक्षण के पेशे से जुड़े अनघ शर्मा को उन्होंने अपनी लेखन यात्रा साझा करने के लिए आमंत्रित किया। अनघ शर्मा ने बताया कि उन्होंने जब कई कहानियां लिख लीं, तो कई दोस्तों तथा रचनाकारों ने दबाव बनाना शुरू किया कि वे अब उपन्यास लिखें।

पहले उन्होंने कहानी ही लिखी, मगर रचनाकार दोस्त प्रत्यक्षा ने उसे उपन्यास बनाने का सुझाव दिया और जब इस प्रक्रिया में वे अटकने लगे, तो प्रत्यक्षा ने महत्वपूर्ण सुझाव दे उसे आगे बढ़ने में मदद की। अनघ शर्मा ने उपन्यास के शुरुआती अंश तथा अंत के दो संक्षिप्त पत्र पढ़कर सुनाए। उपन्यास मुख्य रूप से तीन पात्रों को लेकर चलता है। दोनों रचनाकारों ने दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर दिए। कार्यक्रम में डॉ. विजय शर्मा ने दोनों वक्ताओं के वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए उनके भविष्य की शुभकामना की।

कार्यक्रम में सृजन संवाद फेसबुक लाइव के जरिए देहरादून से सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, दिल्ली से रमेश कुमार सिंह, बनारस से जयदेव दास, जमशेदपुर से करीम सिटी-मॉसकॉम प्रमुख डॉ. नेहा तिवारी, डॉ.क्षमा त्रिपाठी, डॉ. मीनू रावत, गीता दूबे, आभा विश्वकर्मा, रांची से तकनीकी सहयोग देने वाले ‘यायावरी वाया

भोजपुरी’ फेम के वैभव मणि त्रिपाठी, गोरखपुर से पत्रकार अनुराग रंजन, बेंगलुरु से पत्रकार अनघा, लखनऊ से डॉ. मंजुला मुरारी, डॉ. राकेश पांडेय, भोपाल से सुदीप सोहनी, चितरंजन से डॉ. कल्पना पंत, गोरेगांव से कॉलेज के कई छात्र आदि प्रमुख रूप से उपस्थित हुए। सभी ने अपने-अपने विचार रखे, जिससे कार्यक्रम और समृद्ध हुआ। ‘सृजन संवाद’ की दिसंबर मास की गोष्ठी (135वीं) की घोषणा के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।

READ ALSO: यूपी में गंगा स्नान करने जा रहे श्रद्धालुओं से भरा ट्रैक्टर-ट्रॉली तालाब में गिरा, 54 लोग डूबे

Related Articles