रामगढ़ : झारखंड राज्य के लिए आंदोलन के जनक और दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद उनके पैतृक गांव नेमरा में गहरा शोक छा गया है। जैसे ही उनके निधन की खबर गांव पहुंची, लोग शोक में डूब गए। गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा रहा और किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला। गांववासियों की आंखें नम थीं और पूरा वातावरण गमगीन रहा।
Shibu Soren Nemra village : लोगों ने बंद रखे दैनिक कामकाज
दिशोम गुरु के निधन की सूचना मिलते ही नेमरा गांव में मातम पसर गया। ग्रामीणों ने अपने सभी दैनिक कार्य रोक दिए और शोक व्यक्त किया। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि शिबू सोरेन अक्सर नेमरा आते थे और यहां के लोगों से उनका आत्मीय संबंध था। उनके निधन से गांव ने अपना संरक्षक और मार्गदर्शक खो दिया है।
Shibu Soren Nemra village : अंतिम समय गुरुजी के साथ रहे हेमंत व कल्पना सोरेन
शिबू सोरेन ने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से विभिन्न गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। बीते तीन दिनों से उनका इलाज अस्पताल में चल रहा था, लेकिन चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनके अंतिम क्षणों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन उनके साथ थे।
हेमंत सोरेन की आंखें हुईं नम, कल्पना सोरेन रो पड़ीं
दिशोम गुरु के निधन की खबर सुनते ही कल्पना सोरेन फूट-फूटकर रोने लगीं। वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की आंखें भी भर आईं। शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड ने राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में जो उपलब्धियां हासिल कीं, उन्हें याद करते हुए हर कोई भावुक नजर आया।
राजनीति से धीरे-धीरे बना ली थी दूरी
पिछले कुछ वर्षों में शिबू सोरेन ने सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूरी बना ली थी। सेहत संबंधी समस्याओं के चलते वे सार्वजनिक कार्यक्रमों और राजनीतिक गतिविधियों से अलग होते चले गए थे। उन्होंने चुनाव प्रचार और आम लोगों से मुलाकातें भी सीमित कर दी थीं।
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झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत
दिशोम गुरु का जाना न केवल झारखंड की राजनीति के लिए, बल्कि आदिवासी समाज के लिए भी एक अपूरणीय क्षति है। जल, जंगल और जमीन के अधिकार के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले इस नेता की विरासत झारखंड की आत्मा में हमेशा जीवित रहेगी।