हेल्थ डेस्क, जमशेदपुर : 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी ऑफ झारखंड शाखा की ओर से जमशेदपुर के टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें दिल्ली एम्स के प्रोफेसर डॉ. प्रताप शरण भी उपस्थित थे।
दिल्ली एम्स के प्रोफेसर ने कहा-तनाव में सबसे अधिक एमबीबीएस छात्र
इस दौरान डॉ. प्रताप शरण ने संबोधित करते हुए कहा कि मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, लॉ सहित अन्य छात्रों की अपेक्षा दो से तीन गुना अधिक तनाव एमबीबीएस छात्रों में पाया गया है।
टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) व मणिपाल टाटा मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग की ओर से आयोजित सम्मेलन में प्रदेशभर से मनोचिकित्सक विशेषज्ञ शामिल हुए। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में टीएमएच के जीएम डॉ. सुधीर राय व विशिष्ट अतिथि मणिपाल टाटा मेडिकल कालेज के डीन डॉ. जी प्रदीप कुमार उपस्थित थे।
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14 से 15 घंटे तक कार्य करते हैं एमबीबीएस छात्र
दिल्ली एम्स से आए डॉ. प्रताप शरण ने कहा कि अन्य छात्रों के मुकाबले एमबीबीएस छात्रों में तनाव अधिक होने का मुख्य वजह काम का बोझ है। इसके साथ ही परिवार को समय नहीं देना सहित अन्य कारण भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि 14 से 15 घंटे तक का समय एमबीबीएस छात्र पढ़ाई और ड्यूटी में देते हैं। ऐसे में वे न तो खुद के लिए समय निकाल पाते हैं और न ही परिवार के लिए। उन्होंने इसे एक गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि इसका समाधान निकालना होगा। अन्यथा इसका असर चिकित्सक के साथ-साथ रोगियों पर भी पड़ेगा।
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थका व्यक्ति से बेहतर परिणाम की गारंटी बेमानी
दिल्ली एम्स के डॉ. प्रताप शरण ने कहा कि थका हुआ व्यक्ति ज्यादा देर तक काम नहीं कर सकता है। अगर करेगा भी तो वह जोर-जबरदस्ती होगा। जहां पर गलती होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है। कार्यक्रम में आयोजन समिति के चेयरमेन सह टीएमएच मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डा. मनोज साहू, इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी आफ झारखंड शाखा के अध्यक्ष डा. अविनाश शर्मा, सचिव डा. आलोक प्रताप, डा. सुशांत पाढ़ी, डा. महेश हेम्ब्रम सहित अन्य उपस्थित थे।
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डा. मनोज साहू बने झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष
सम्मेलन के दौरान अगले कार्यकाल के लिए नए अध्यक्ष का चुनाव भी किया गया। इस दौरान सर्वसम्मति से टीएमएच के मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डा. मनोज साहू को झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष चुना गया। इस दौरान उन्होंने अपना कार्यभार ग्रहण किया।
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इस तरह हुई विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस को लेकर आपके मन में कई तरह के सवाल चलते होंगे। तो आइए उसके बारे में आपको बताते हैं। पहला सवाल आपके मन में यही चलता होगा कि विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत कैसे हुई? दरअसल, इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने साल 2003 में पहली बार 10 सितंबर के दिन विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाने की शुरुआत की थी। इस इवेंट को विश्व फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ और विश्व आर्गेनाइजेशन ने स्पॉन्सर किया था।
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वर्ष 2004 में हुई घोषणा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वर्ष 2004 में इसकी औपचारिक रूप घोषणा की। इसके बाद अलग-अलग थीम के साथ हर साल पूरे विश्व भर में आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाए जाने लगा। इसका उद्देश्य लोगों को आत्महत्या के प्रति जागरूक करना है। ताकि अधिक से अधिक लोगों को आत्महत्या करने से
बचाया जा सकें।
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इस बार की क्या है थीम
झारखंड के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. दीपक गिरी कहते हैं कि हर साल अलग-अलग थीम के साथ इस दिवस को मनाया जाता है। इस बार का थीम ‘क्रिएटिंग होुप थ्रू एक्शन’ है। जिसका अर्थ होता है कि ‘कार्रवाई के माध्यम से आशा पैदा करना’ है। पूरे विश्व में इसी थीम के साथ मनाया जा रहा है।
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आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण तनाव
डॉ. दीपक गिरी ने कहा कि आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण तनाव है। ऐसे में तनाव से बचने के लिए हमलोगों को हर संभव प्रयास करना चाहिए। तनाव कई कारणों से होता है जिसे कम किया जा सकता है। इस दौरान आपके दोस्त, परिवार के सदस्य सहित अन्य
लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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10 में 8 लोग आत्महत्या करने से पूर्व देते हैं संकेत
डॉ. दीपक गिरी ने कहा कि आत्महत्या करने से पूर्व 10 में आठ लोग कोई न कोई संकेत देते हैं। जिसे अगर सही समय पर पकड़ लिया जाए तो उस व्यक्ति को बचाया जा सकता है। ऐसे में आत्महत्या के लक्षण को भी पहचानने की जरूरत है। वहीं, डा. मृत्युंजय धावड़िया ने तनाव और नशे का संबंध पर अपनी राय रखीं। उन्होंने कहा कि जब इंसान अधिक तनाव में होता है तो वह नशे का सेवन करना शुरू कर देता हैं।
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