राहुल सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, विश्व भारती, शांतिनिकेतन
क्या आपने पक्षियों (Bird ) को अपने बच्चों की परवरिश करते कभी गौर से देखा है? जब भी आप देखेंगे तो जो पहली बात आप जानेंगे वह यह कि मनुष्यों की तुलना में कोई भी पशु-पक्षी अपनी बच्चों को धरती पर लाने के लिए बराबर जतन करता है। मनुष्यों को इस बात का गुमान हो सकता है, पर एक मामूली-सी दिखने वाली चिड़िया उसकी इस अहमन्यता को झटके में तोड़ सकती है। बस इसके लिए आपको उस पक्षी की तैयारी पर नजर रखनी होगी।
उसका हर चरण पर्याप्त श्रमसाध्य होता है। मनुष्यों में तो जोड़ियाँ ढूंढने से लेकर बनाने तक में रिश्तेदारों से लेकर मित्र और शुभचिंतक तक शामिल होते हैं। पक्षियों की दुनिया में ऐसी कोई बाहरी मदद शामिल नहीं होती है। उनके लिए जोड़ियाँ बनाना भी एक बहुत कठिन काम होता है। हर पक्षी के साथ जोड़ियों को बनाने की अपनी कठिनाइयाँ और शर्तें होती हैं।
किसी को मादा को रिझाने के लिए बहुत उपक्रम करने पड़ते हैं तो किसी को बकायदा पहले मादा को पसंद आने लायक एक सुंदर घोंसला तैयार करना होता है। कोई नृत्य के शिल्प में अपना प्रणय निवेदन करता है तो कहीं यह मामला बाकी नरों से मुकाबला करके पूरा होता है। इस शुरुआती चुनौती को पार पाने के बाद घोंसला के निर्माण से लेकर अंडे को सेने की जो प्रक्रिया है, उसे आप देखेंगे तो यह किसी तप या साधना से आपको कम नहीं लगेगा।
घोंसले के निर्माण के लिए जिन प्राकृतिक उपादानों को पक्षी (Bird ) इस्तेमाल करते आये हैं, उनकी कमी से पक्षियों (Bird ) के आचरण में आनेवाले बदलावों को पक्षी विज्ञानी दर्ज कर रहे हैं। देवघर में इस वर्ष एक पक्षी प्रेमी ने बुलबुल को अपने घोंसले के निर्माण में पॉलीथिन का इस्तेमाल करते हुए पाया।
मनुष्यों की भांति सभी पक्षी (Bird) पूरे साल प्रजनन करने में समर्थ नहीं होते, इसके लिए उन्हें मौसम के अनुकूल होने की प्रतीक्षा करनी होती है। ऋतु की इस अनुकूलता से ही संभवतः ऋतुचक्र की अवधारणा सामने आयी होगी। पक्षियों और ऋतुओं की परस्परता को समझे बगैर इसकी खूबसूरती को नहीं समझा जा सकता है। ऋतुओं के साथ प्रकृति में आनेवाले बदलावों पर पशु-पक्षी और उनकी संततियों का जीवन निर्भर करता है।
इसलिए प्रकृति में आनेवाले बदलावों से बहुत से जीवों के लुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। एक घास, झाड़ी, दलदल, सूखा पेड़ भी किसी पक्षी(Bird) के अस्तित्व के लिए निर्णायक महत्व का हो सकता है। हम इस बात को आज तक नहीं समझ सके हैं। प्रकृति की विविधता का सीधा संबंध जीवों की विविधता और उनके अस्तित्व से जुड़ा है। ज्यों-ज्यों यह विविधता नष्ट होती जायेगी त्यों-त्यों पृथ्वी से बहुत से पशु-पक्षी लुप्त होते चले जायेंगे।
समय रहते इस दिशा में अपेक्षित प्रयास करने की जरुरत है। झारखंड के देवघर में कुमैठा के इलाके में इंडियन थीक नी (स्टोन करल्यू) के प्रजनन और आवासन लायक ‘हैबिटॉट’ मौजूद है। उस क्षेत्र के अलावे ‘इंडियन थीक नी’ को अन्यत्र देख सकना काफी मुश्किल है। पर अब उस क्षेत्र में अस्पताल के निर्माण ने खतरे की घंटी बजा दी है।
उस निर्जन में तकरीबन 27 किस्म के पक्षी साल भर बहुत सहजता से देखे जा सकते थे, जिनमें से तीन किस्में सहजता से अन्यत्र उपलब्ध नहीं हैं। पर इन्हें संरक्षित करने का कोई ब्लूप्रिंट सरकारी महकमों के पास नहीं है। यह खासा चिंता का विषय है।
ऐसे ही झारखंड के साल-सखुआ के जंगल बहुत-से पक्षियों (Bird) के लिए प्रजनन और प्रवासन के लिए अनुकूल ठिकाने की तरह है। जहाँ उत्तराखंड से लेकर केरल ओर पश्चिमी घाट के पक्षी अलग-अलग ऋतुओं में प्रजनन के लिए आते हैं। जैसे केरल की ओर से इंडियन पिट्टा तो उत्तराखंड की ओर से पैराडाईज फ्लाईकैचर झारखंड के जंगलों का प्रतिवर्ष रुख करते हैं और प्रजनन करने के बाद अपने बच्चों के संग वापस लौट जाते हैं।
इन दोनों को आप अगली पीढ़ी को लाने के लिए जतन करते देखेंगे तो दांतो तले उंगली दबा लेंगे। पैराडाईज फ्लाईकैचर का घोंसला अपने आप में अनूठा होता है। वह इतना छोटा और कलात्मक होता है कि उसे देखकर यह यकीन करना मुश्किल होता है कि यह पैराडाईज फ्लाईकैचर का घोंसला हो सकता है।
अपने घोंसले के निर्माण के लिए वह टहनी के जिस हिस्से का चुनाव करता है, वह खासा हैरतंगेज होता है। उस छोटे से घोंसले में वह चार चूजों को जन्म देता है। उन चूजों का पेट भरने के लिए नर और मादा जैसा अनवरत श्रम करते हैं, उसके लिए बस एक ही शब्द है-अविश्वसनीय। उड़ती तितलियों को हवा में पकड़ लेने का हुनर इन्हें खास बनाता है। तितलियों और कीट पतंगों से अपने नवजातों का पेट पालते इन नर-मादा को आप देखें तो जान पड़ेगा कि पैरेंटिंग केवल मनुष्य नहीं जानते।
किसी संभावित खतरे या अनचाही उपस्थिति को भांप कर पक्षी (Bird ) जिस ढंग से अपने बच्चों को खामोश और स्थिर रहने को प्रशिक्षित किये रहते हैं, वह हैरतंगेज जान पड़ता है। उनकी खामोशी और स्थिरता उनको अदृश्य बना देती है। मतलब आँख के पास होकर भी वे ओझल रहने में कामयाब रहते हैं।
ऐसा एक नहीं दर्जनों पक्षियों (Bird) के साथ मैं देख चुका हूँ। ऋतुचक्र के बदलने के साथ यह अपने बच्चों समेत वापस लौट जाते हैं। जो बात कमाल की है वह यह कि अन्य ऋतुओं में उन्हीं जंगलों में आप उस पक्षी (Bird) की मौजूदगी का कोई प्रमाण नहीं ढूंढ पायेंगे। लेकिन अनुकूल ऋतु में वे फिर लौट आते हैं।
उनका लौटना इतना आश्वस्तिदायी होता है कि उस सुख को अलग से वर्णित नहीं किया जा सकता है। इन बातों को लेकर आम जनजीवन में थोड़ी जागरुकता की आवश्यकता है, जिससे प्रकृति की विविधता के साथ पक्षियों (Bird )की यह खूबसूरत दुनिया आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी सलामत रहे।
तस्वीर 1॰ इंडियन पिट्टा
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