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…तो डील पक्की समझें?

झारखंड की नौकरशाही के अंदर की बात जानें हमारे चीफ एग्जीक्यूटिव एडिटर ब्रजेश मिश्र की कलम से...

by Dr. Brajesh Mishra
नौकरशाही
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बशीर बद्र का एक बड़ा चर्चित शेर है :- कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता। झारखंड की नौकरशाही के गलियारे में इन दिनों एक ऐसी ही बेवफाई के किस्से फिजाओं में तैर रहे हैं। मामला सोमरस वाले महकमे से जुड़ा बताया जा रहा है। दावा है कि बड़ी कुर्सियों पर बैठे दो हुकमरानों के बीच एक अलिखित समझौता हुआ था। अरे हां, वही, जिसे मौजूदा कल्चर में डील कहते हैं। हम इसे ‘इश्क’ मान लेते हैं।

बहरहाल, बात यह तय हुई कि प्रतिदिन सुरा बिक्री से होने वाले कलेक्शन के अनुसार एक निर्धारित हिस्सा छोटे हाकिम बड़े हाकिम को उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेंगे। वादे के अनुसार कुछ महीनों तक ‘इश्क’ परवान चढ़ता रहा। महबूब के भेजे ‘गुलदस्ते’ आते रहे। जैसा कि मुहब्बत में अक्सर होता है, मिलन के बाद जुदाई, संयोग के बाद वियोग। आखिरकार, यहां भी वह घड़ी आ गई। एक दिन छोटे साहब ने बड़े साहब से अपने दिल की बात कह दी। बताया कि अब वह इस रिश्ते को और कायम नहीं रख सकेंगे। अगले कुछ महीनों में उन्हें अपना आशियाना छोड़कर जाना है। लिहाजा समझौते के तहत प्यार की निशानी के तौर पर भेजे जाने वाले ‘गुलदस्ते’ अब नहीं जा सकेंगे। बस फिर क्या था, यहां भी ‘ठुकरा के मेरा प्यार’ टाइप मामला बन गया। इस बेवफाई से बड़े साहब के दिल पर इतनी गहरी चोट लगी कि उन्होंने छापेमारी शुरू करा दी।

ओटीटी प्लेटफार्म हॉटस्टार की मौजूदा टॉप वेब सीरिज से लेकर राजकुमार राव की फिल्म ‘शादी में जरूर आना’ तक में तो इंतकाम लेने का यही तरीका बताया गया है। खैर, बड़े साहब की इस नाराजगी से छोटे साहब के पूरे प्लान पर संकट के बादल छाने लगे। ठंड के इस मौसम में कहीं बारिश न हो जाये, लिहाजा छोटे साहब ने फिर समझौते की पहल की। बड़े साहब के दरबार में पहुंचे, दोहराया कि अब विदा होने की बेला आ रही है। कुछ तो पुराने रिश्ते का ख्याल कीजिए। अब पहले जैसे ‘गुलदस्ते’ नहीं भेज पाएंगे। कुछ फूल अपने साथ ले जाने हैं, सो, संबंध कायम रखने के लिए अब से बस कुछ गुलाब ही दिखेंगे। अब कारिंदे पूछ रहे हैं :- तो डील पक्की समझें।

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