कोलकाता : त्योहार कोई भी हो, हम उसे उसकी विशेषता और अपनी परंपराओं के अनुसार मनाते हैं। लेकिन, यदि हम धर्म में बताए गए इन पारंपरिक कृत्यों के पीछे का आध्यात्मिक विज्ञान समझें, तो उनका महत्व हमें और स्पष्ट हो जाता है। इस लेख में सनातन संस्था द्वारा संकलित जानकारी के आधार पर गुडीपड़वा अर्थात नवसंवत्सर के दिन की जाने वाली धार्मिक क्रियाओं को जानेंगे। इसके साथ ही, वर्तमान समय के संकट के दौरान इस पर्व को कैसे मनाना चाहिए, इसे भी समझेंगे।
अभ्यंग स्नान (मांगलिक स्नान)
गुड़ीपड़वा के दिन प्रातः जल्दी उठकर अभ्यंग स्नान करने का विधान है। स्नान के दौरान देश-काल का उच्चारण किया जाता है।
लाल फूल से सजाएं तोरण
स्नान के पश्चात आम के पत्तों का तोरण बनाकर हर द्वार पर लाल फूलों के साथ बांधना चाहिए, क्योंकि लाल रंग शुभता का प्रतीक होता है।
सबसे पहले देव पूजा
सबसे पहले नित्य कर्म और देवपूजन किया जाता है। वर्ष प्रतिपदा के दिन महाशांति करने की परंपरा है। इस शांति के आरंभ में ब्रह्मदेव की पूजा की जाती है, क्योंकि इस दिन ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की थी। पूजा में उन्हें दवाना (एक प्रकार की सुगंधित वनस्पति) अर्पित की जाती है। इसके बाद होम-हवन और ब्राह्मण-सत्कार किया जाता है। फिर, भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और ‘नमस्ते बहुरूपाय विष्णवे नमः’ मंत्र से उन्हें प्रणाम किया जाता है। अंत में ब्राह्मण को दक्षिणा दी जाती है और यदि संभव हो तो इतिहास, पुराण आदि ग्रंथों का दान किया जाता है। इस पूजा से सभी पापों का नाश, दीर्घायु प्राप्ति और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
गुड़ी की स्थापना
इस दिन सूर्योदय के समय विजय का प्रतीक गुड़ी अर्थात ब्रह्मध्वज स्थापित की जाती है। गुड़ी को सूर्योदय के तुरंत बाद घर के मुख्य द्वार के बाहर, लेकिन घर के भीतर से देखने पर दाईं ओर स्थापित करना चाहिए। इसे भूमि पर एक पाट (लकड़ी का चौकोर पट्टा) रखकर, स्वस्तिक चिह्न बनाकर खड़ा किया जाता है। सूर्यास्त के समय गुड़ी को गुड़ का नैवेद्य अर्पण कर उतारा जाता है।
दान देने से तृप्त होते पितर
याचकों को विभिन्न प्रकार के दान दिए जाते हैं, जैसे – जलदान (प्याऊ की स्थापना)। इससे पितर तृप्त होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, धर्मदान सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है। वर्तमान समय में धर्मशिक्षा देना अति आवश्यक है।
पंचांग श्रवण
ज्योतिषाचार्य या विद्वान ब्राह्मण के माध्यम से नए वर्ष का पंचांग (वर्षफल) श्रवण किया जाता है। पंचांग श्रवण से धन, आयु, पापों का नाश, रोगों का निवारण और कार्य सिद्धि प्राप्त होती है। इसे सुनने से गंगा स्नान के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।
कड़वे नीम का प्रसाद
पंचांग श्रवण के बाद कड़वे नीम के पत्तों का प्रसाद वितरित किया जाता है। इस प्रसाद को नीम के पत्ते, जीरा, हींग, भीगी हुई चने की दाल और शहद मिलाकर बनाया जाता है।
भूमि (जमीन) जोतना
इस दिन भूमि की जुताई करने की परंपरा है। जुताई से मिट्टी के सूक्ष्म कणों में प्रजापति तरंगों का स्पंदन बढ़ता है, जिससे बीज अंकुरण की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। कृषि उपकरणों और बैलों पर पवित्र मंत्रों के साथ अक्षत चढ़ाई जाती है। खेत में काम करने वालों को नए वस्त्र दिए जाते हैं तथा उनके भोजन में पका हुआ कद्दू, मूंग की दाल, चावल और पूरणपोली (मीठी दाल पूरी) व्यंजन शामिल होते हैं।
सुखदायक कृत्य
इस दिन मंगल गीत, वाद्ययंत्र और पुण्य पुरुषों की कथाएँ सुननी चाहिए। आधुनिक समय में त्योहारों को केवल मौज-मस्ती का अवसर मान लिया गया है, लेकिन हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार, त्योहार अधिकाधिक चैतन्य प्राप्त करने का अवसर होते हैं। इसलिए इस दिन सात्त्विक भोजन, सात्त्विक पोशाक धारण करनी चाहिए और अन्य धार्मिक कृत्यों का पालन करना चाहिए।
इस शुभ दिन पर नए या रेशमी वस्त्र और आभूषण पहनने से देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इन वस्त्रों में देवताओं की सूक्ष्म तरंगें संचित रहती हैं, जो वर्षभर धारण करने वाले को लाभ देती हैं।
गुड़ीपड़वा के दिन की जाने वाली प्रार्थना
“हे ईश्वर, आज आपके द्वारा प्राप्त होने वाले शुभ आशीर्वाद और ब्रह्मांड से प्रवाहित होने वाली सात्त्विक तरंगों को मैं अधिकतम ग्रहण कर सकूं। इन लहरियों को ग्रहण करने की मेरी क्षमता सीमित है। अतः मैं पूर्णतः आपकी शरण में हूं। कृपया मुझे इन सात्विक लहरियों को ग्रहण करने योग्य बनाएं।”


