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Chandrayan-3 : सरकारी स्कूलों में पढ़कर चंद्रयान-3 तक पहुंच गए बिहार के ये चार वैज्ञानिक, पढ़िए उनके संघर्ष की कहानी

by Rakesh Pandey
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शिक्षा डेस्क, बिहार : दोस्तों, कहा जाता है कि जज्बा और जुनून हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती। इस वाक्य को फिर से एक बार चरितार्थ कर दिखाया है बिहार के चार युवकों ने, जिसकी चर्चा आज देशभर में हो रही है। इनकी संघर्ष की कहानी पढ़ेंगे तो आपका भी आत्मबल सातवें आसमान तक पहुंच जाएगा। किसी के पास पढ़ने का पैसा नहीं था तो किसी के पास खाने का लेकिन ये अपनी मेहनत व लगन से एक नई कहानी लिख डाली। जी हां। बिहार के विभिन्न जिलों में रहने वाले ये चारों वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। समस्तीपुर के अमिताभ कुमार चंद्रयान-3 (Chandrayan-3) में ऑपरेशन डॉयरेक्टर की भूमिका में हैं तो वहीं, मुजफ्फरपुर के आशुतोष ने चंद्रयान-3 (Chandrayan-3) को कंट्रोल सेंटर से लांचिंग पैड तक पहुंचाने का सेटअप तैयार किया है। आइए, पढ़ते हैं उनकी कहानी।

मसाला बेचकर दिया पिता का साथ

बिहार के गया निवासी सुधांशु कुमार चंद्रयान-3 (Chandrayan-3)  के लॉन्चिंग टीम में शामिल हैं। सुधांशु के पिता का नाम महेंद्र प्रसाद हैं। वे आटा चक्की व मसाला बेचकर
सुधांशु का लालन-पालन किया हैं। महेंद्र प्रसाद कहते हैं कि मेरे पास उतना पैसा नहीं था कि बेटे को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाएं। इसे देखते हुए सरकारी स्कूल में
भेजने लगा। लेकिन बेटा हर दिन स्कूल जाता था। घर में भी आकर पढ़ता था।

एक दिन स्कूल में उसे पुरस्कार मिलना था लेकिन उसके पास कोई अच्छा कपड़ा नहीं था कि पहनकर जाएं। फटा जींस पहनकर गया लेकिन उसके चेहरे पर कभी उदासी नहीं रहता था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं था। इसे देखते हुए सुधांशु मेरे साथ घूम-घूमकर मसाला बेचता था। तब उसका उम्र आठ साल था। लेकिन आज उन्होंने मेरे किस्मत बदल दी।

सपना था बेटे को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाना

मुजफ्फरपुर के रहने वाले आशुतोष कुमार के पिता रविंद्र सिंह कहते हैं कि उनका सपना था कि बेटे को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाना लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से यह संभव नहीं हो पाया। चूंकि, घर में पांच बेटियों के बाद आशुतोष का जन्म हुआ था तो उसे प्यार-दुलार काफी ज्यादा मिलता था। एक बार कान्वेंट स्कूल का फार्म भी खरीद कर लाया लेकिन सोचा फीस कहां से भरेंगे। इसे देखते हुए सरकारी स्कूल में दाखिला करा दिया।

आज आशुतोष के सफलता से न सिर्फ घर-परिवार बल्कि गांव व पूरा बिहार गर्व महसूस कर रहा है। आशुतोष चंद्रयान-3 को कंट्रोल सेंटर से लांचिंग पैड तक पहुंचाने का सेटअप तैयार किया है। उनके पिता कहते हैं कि आशुतोष की पढ़ाई-लिखाई में शुरू से ही मन लगता था। वे स्कूल से आता तो घर में पढ़ाई करने बैठ जाता था। उसे पढ़ने के लिए कभी भी नहीं कहा जाता था।

बच्चे से ही तेज दिमाग का था रवि

बिहार के सीतामढ़ी निवासी अरुण चौधरी के पुत्र रवि चौधरी हैं। मां मधुबाला चौधरी कहती हैं कि रवि बचपन से ही तेज दिमाग का था। वह कुछ-कुछ नया प्रयोग
करते रहता था। एक दिन प्रयोग करने में ही चादर जला दिया। इस दौरान डांटने पर अपने भाई को दोषी ठहरा दिया।

मधुबाला चौधरी कहती हैं कि उसका बचपन से ही कुछ नया करने पर जोर रहता था। इसे देखकर लगता था कि वह इस तरह के काम में जरूर सफल होगा। वर्तमान में रवि चौधरी ने चंद्रयान-3 (Chandrayan-3) में कम्यूनिकेशन चैनल तैयार किया है।

अमिताभ खेती के साथ पढ़ाई करता

बिहार के समस्तीपुर निवासी अमिताभ कुमार आज चंद्रयान-3 के ऑपरेशन डायरेक्टर हैं। उनके पिता रामचंद्र प्रसाद किसान हैं। अमिताभ पांच भाई है। रामचंद्र प्रसाद
कहते हैं कि आर्थिक तंगी के कारण अमिताभ को सरकारी स्कूल में पढ़ाया।

इस दौरान वे खेती भी मदद करता था। बाद में पढ़ाई के लिए पटना भेजा लेकिन इस दौरान
अमिताभ कभी भी अलग से पैसा की मांग नहीं किया। उसे जो भेज दिया जाता उसी में काम चला लेता था। अब अमिताभ के सफलता से पूरे बिहार गर्व महसूस कर रहा है।

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