सेंट्रल डेस्क : चुनाव आयोग (निर्वाचन आयोग) ने मंगलवार को झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। झारखंड में विधानसभा की 81 सीटों पर चुनाव होंगे। झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव की तारीखों की घोषणा के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार, चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार, डॉ सुखबीर सिंह संधु और कई उच्च अधिकारी मौजूद रहे। चुनाव आयोग का ये ऐलान क्यों इतना महत्वपूर्ण है और क्या है इसकी पावर आइये जानते हैं।
आजादी के बाद से निर्वाचन आयोग की भूमिका लागू!
भारत के संविधान ने भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India) को, संसद और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल और भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के लिए चुनाव कराने की पूरी प्रक्रिया का निर्देशन और नियंत्रण करने का अधिकार दिया है। यह प्रक्रिया अंग्रेजों से भारत की आजादी के बाद से लागू किया गया है। लगभग 200 सालों तक अंग्रजो के शासन के बाद, भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। इसके बाद 26 जनवरी 1950 को देश में लोकतंत्र की स्थापना की गयी, जिसके बाद भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बना। तब से देश में संविधान के अनुसार एक नियमित अंतराल के बाद स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते आ रहे हैं। इसकी पूरी जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की होती है।
इन पदों का संचालन करता है EC
भारत का निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। यह भारत में लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं, देश में राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। लेकिन याद रहे, यह आयोग राज्यों में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए जिम्मेदार नहीं है, इसके लिए भारत के संविधान द्वारा अलग से “राज्य निर्वाचन आयोग” प्रदान किया गया है।
पहले निर्वाचन आयोग में केवल एक ही मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) होता था। लेकिन वर्तमान में इसमें “मुख्य चुनाव आयुक्त” और दो “चुनाव आयुक्त” और होते हैं।
कैसे होती है चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति?
अधिनियम की धारा 7 के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति, एक चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति करते हैं। इस समिति का नेतृत्व प्रधानमंत्री करते है। इस समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा चुना गया केंद्रीय मंत्रिपरिषद का एक सदस्य शामिल होता है।
कितना होता है CEC का कार्यकाल?
मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) का कार्यकाल उनके इस पद पर नियुक्त होने की तिथि से अधिकतम छह वर्ष तक हो सकती है। हालांकि, यदि सीईसी कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही वह पैंसठ वर्ष की आयु पूरी कर लेते हैं, तो वह पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
कितना मिलता है वेतन?
भारत के चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान वेतन और भत्ते मिलते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान तरीके से और समान आधार पर ही पद से हटाया जा सकता है।
कार्य का संचालन
आयोग का नई दिल्ली में एक अलग सचिवालय है, जिसमें लगभग 550 अधिकारी हैं। इसमें पांच या छह उप चुनाव आयुक्त और महानिदेशक होते हैं जो सचिवालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं, जो आयोग की सहायता करते हैं। उन्हें आम तौर पर देश की राष्ट्रीय सिविल सेवा से नियुक्त किया जाता है और आयोग द्वारा कार्यकाल के साथ चुना और नियुक्त किया जाता है।
निर्वाचन आयोग की मुख्य जिम्मेदारियां:
- संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्रों के प्रादेशिक क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण करना।
- मतदाताओं की नेमलिस्ट को तैयार करना और समय-समय पर लिस्ट में संशोधन करना तथा सभी मतदाताओं का पंजीकरण करना।
- चुनावों से सम्बंधित सभी जानकारियां जैसे चुनाव तिथियां, समय, जगह आदि की अधिसूचना देना तथा नामांकन पत्रों की जांच करना।
- सभी एलिजिबल राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने का काम भी चुनाव आयोग ही करता है तथा उन्हें चुनाव चिह्न भी CEC ही देता है। और यदि चुनाव चिह्न आवंटित करने से संबंधित कोई विवाद हो तो उसका निपटारा करना भी इस आयोग की जिम्मेदारी होती है।
- निष्पक्ष चुनावी व्यवस्था और सुरक्षा से संबंधित विवादों की जांच के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करना। आचार संहिता का निर्धारण करना।
- सांसदों की अयोग्यता से संबंधित मामलों पर राष्ट्रपति को सलाह देना एवं विधायकों की अयोग्यता से संबंधित मामलों पर राज्यपाल को सलाह देना।
- चुनाव आयोग को बूथ कैप्चरिंग, धांधली, हिंसा तथा अन्य अनियमितताओं के मामले में मतदान रद्द करने का अधिकार भी है।
- पूरे देश में आम चुनाव कराने के लिए लगभग बारह मिलियन से अधिक मतदान कर्मी और नागरिक पुलिस बल शामिल होते हैं। ये सविंधान के अनुसार इस निष्पक्ष चुनाव को सफल बनाते हैं।