- पूर्वी सिंहभूम जिले में एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी थे बालेश्वर सिन्हा, पार्वती घाट पर हुआ अंतिम संस्कार
- गांधीजी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूदे, आजादी मिलने के बाद जमशेदपुर आए
जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम जिले के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा (95) का निधन मंगलवार को टीएमएच में
हो गया। इसके बाद बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। देश के आजादी में अखौरी बालेश्वर सिन्हा का महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके अमूल्य योगदान के लिए देश और प्रदेश के विभिन्न मंचों पर सम्मानित किया गया। वर्ष 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया था।
चुरामनपुर गांव, थाना बक्सर, जिला बक्सर (बिहार) के रहने वाले अखौरी बालेश्वर सिन्हा जब नौवीं कक्षा में थे, तब सन 1942 में गांधीजी के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने में उनके प्रेरणास्रोत उनके चचेरे बड़े भाई अखौरी रामनरेश सिन्हा (एडवोकेट) का भी अहम योगदान रहा। एडवोकेट अखौरी रामनरेश सिन्हा आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय थे।
कई बार आंदोलन के दौरान जेल भी गए। अंग्रेज अफसर बराबर उनके घर बड़े भाई को पकड़ने आते थे और उनके नहीं मिलने पर घरवालों को तंग करते थे। इससे अखौरी बालेश्वर सिन्हा को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की इच्छा को बल मिलता था। वे छात्रावस्था में अपने दो और साथियों के साथ घर-घर घूमकर अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा बांटते और जन-जागरण करते थे।
इसी दौरान 1945 में बक्सर बाजार में जन-जागरण करते समय अंग्रेज पुलिस ने उन्हें टोली के कुछ लड़कों सहित गिरफ्तार कर लिया। तब अखौरी बालेश्वर सिन्हा की उम्र करीब 18 वर्ष थी। बक्सर जेल में छह माह 20 दिन की सजा काटकर वे एक बार फिर टोली के साथ सक्रिय हो गए। हालांकि उसके बाद दोबारा कभी अंग्रेज पुलिस उन्हें नहीं पकड़ सकी। आजादी मिलने के बाद अखौरी बालेश्वर सिन्हा जमशेदपुर आए, जहां बाद में टाटा स्टील में नौकरी मिल गई। वहां से सेवानिवृत्त होने के बाद न्यू हाउसिंग कालोनी, आदित्यपुर में अपने पुत्र सह शहर के जाने-माने शिशु रोग विशेषज्ञ डा. मिंटू अखौरी सिन्हा और पुत्रवधू डा. रश्मि वर्मा के साथ रहते थे।
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