Ranchi (Jharkhand) : राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा है कि हस्तकरघा केवल एक कला मात्र नहीं, बल्कि यह हमारी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने कहा कि इसके हर धागे और बुनाई में हमारी लोक-कथाएं और रीति-रिवाज समाए हुए हैं। राज्यपाल गुरुवार को रांची के डोरंडा महाविद्यालय में 12वें राष्ट्रीय हस्तकरघा दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में बोल रहे थे, जिसका आयोजन विवर्स डेवलपमेंट एंड रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (WDRO) और बुनकर प्रकोष्ठ द्वारा किया गया था।
बुनकरों का सम्मान, आत्मनिर्भर भारत की नींव
राज्यपाल ने इस आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि यह सिर्फ हमारी सांस्कृतिक विरासत का जश्न नहीं है, बल्कि उन लाखों बुनकर परिवारों का सम्मान भी है, जो आत्मनिर्भर भारत की नींव को मजबूत कर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री के लोकप्रिय अभियानों, ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘हैंडलूम फॉर होम’ का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इन पहलों ने देश में स्वदेशी वस्त्रों के प्रति सम्मान की भावना को और बढ़ाया है।
अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए गंगवार ने बताया कि जब वे वस्त्र मंत्रालय में थे, तब उन्हें देशभर के बुनकरों और हस्तशिल्पियों की समस्याओं को समझने और उनके समाधान के लिए काम करने का मौका मिला था। उन्होंने कहा कि उस दौरान कौशल विकास, तकनीकी सहायता और बाज़ार उपलब्धता के माध्यम से बुनकरों के सशक्तिकरण के लिए ठोस प्रयास किए गए थे।
झारखंड की विशिष्ट हस्तकरघा परंपराओं की चर्चा
राज्यपाल ने झारखंड की खास हस्तकरघा परंपराओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि तसर रेशम और कत्था कढ़ाई जैसे शिल्प इस राज्य की पहचान हैं और इनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी एक विशिष्ट छवि बनी हुई है। उन्होंने हाल ही में इन विषयों पर बनी दो फिल्मों, “संगठन से सफलता” और “फैशन के लिए खादी” का उल्लेख करते हुए कहा कि ये फिल्में हस्तकरघा के सामाजिक और आर्थिक महत्व को जनता तक पहुँचाने में सहायक साबित हुई हैं।