नई दिल्ली: महाराष्ट्र में नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के फैसले के बाद राज्य की राजनीति में नया विवाद खड़ा हो गया है। बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति सरकार के इस निर्णय को लेकर विपक्षी दलों ने तीखा विरोध दर्ज कराया है।
जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस कदम को देशभर में एक साझा संवाद भाषा की दिशा में उठाया गया कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे “हिंदी थोपने” की साजिश करार दे रहा है।
राज ठाकरे का विरोध: ‘हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं’
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने इस निर्णय पर सख्त आपत्ति जताते हुए कहा कि यह भाषाई क्षेत्रीयता के सिद्धांत पर हमला है। राज ठाकरे ने सरकार को चेतावनी दी कि, “हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं। अगर आप महाराष्ट्र को हिंदी में रंगने की कोशिश करेंगे, तो यहां संघर्ष तय है।”
उन्होंने एक्स पर लिखा, “हिंदी कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है। यह भी एक राज्य भाषा है, जैसे अन्य राज्यों की भाषाएं हैं। इसे महाराष्ट्र में प्राथमिक स्तर से क्यों पढ़ाया जाना चाहिए?”
कांग्रेस का आरोप: ‘मराठी पहचान पर हमला’
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि मराठी भाषा ही महाराष्ट्र की संस्कृति और पहचान है और भाजपा सरकार उस पर आघात कर रही है।
हर्षवर्धन सपकाल ने भाजपा पर लगाया आरोप
“भारत की असली पहचान उसकी विविधता में एकता है और भाजपा इस विविधता को मिटाने की साजिश कर रही है।” कांग्रेस ने हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाए जाने के फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की है।
हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने का निर्णय
राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को स्कूल शिक्षा विभाग के माध्यम से अधिसूचना जारी कर 2025-26 से कक्षा 1 में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में लागू करने की घोषणा की है।
इस नीति के तहत:
• हिंदी को कक्षा 1 से चरणबद्ध तरीके से शामिल किया जाएगा।
• यह प्रक्रिया 2028-29 तक सभी कक्षाओं में लागू होगी।
• मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी अनिवार्य होगी।
• अन्य माध्यम के स्कूलों में पहले से तीन-भाषा फॉर्मूला लागू है, परंतु अब यह अंग्रेजी और मराठी माध्यम के स्कूलों पर भी लागू किया जाएगा।
‘मराठी आवश्यक, लेकिन संवाद के लिए एक भाषा जरूरी’- बीजेपी
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि, “हर व्यक्ति को महाराष्ट्र में मराठी आनी ही चाहिए। लेकिन पूरे देश में संवाद के लिए एक साझा भाषा होना जरूरी है।”
फडणवीस ने कहा कि मराठी अनिवार्य है और रहेगी, लेकिन अतिरिक्त भाषाओं का ज्ञान व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर होना चाहिए।
मुंबई में चुनाव और भाषाई राजनीति
बीजेपी के लिए यह मुद्दा बेहद संवेदनशील हो गया है क्योंकि मुंबई और अन्य शहरों में निकाय चुनाव नजदीक हैं, जहां मराठी बनाम गैर-मराठी मुद्दा अक्सर उभरता रहा है। मुंबई में हिंदी भाषी आबादी बड़ी संख्या में है, जबकि मराठी अस्मिता का मुद्दा भी लंबे समय से राजनीतिक विमर्श का हिस्सा रहा है।
शिक्षा नीति के बहाने भाषा की राजनीति तेज
हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के कदम ने महाराष्ट्र में भाषाई पहचान और सांस्कृतिक अधिकारों को लेकर नई बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर इसे राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीति का हिस्सा बनता जा रहा है।