Jamshedpur Muharram : मोहर्रम की नौवीं तारीख को शनिवार की रात साकची स्थित हुसैनी मिशन इमामबाड़ा से अलम का जुलूस निकाला गया। इससे पहले इमामबाड़े में मजलिस का आयोजन हुआ, जिसमें मौलाना सैयद सादिक अली ने करबला की दर्दनाक दास्तान पेश की। उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके परिजनों की कुर्बानी को याद करते हुए शहीदों के बलिदान की मिसाल को श्रद्धांजलि दी।
मौलाना सादिक अली ने अपने खिताब में बताया कि जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम करबला के मैदान में बिल्कुल अकेले रह गए थे, तो वह अपने बीमार बेटे सैयद-ए-सज्जाद से आखिरी बार मिलने के लिए खैमे में पहुंचे। तेज बुखार में तप रहे सज्जाद उन्हें पहचान नहीं पाए और अपने चाचा हज़रत अब्बास और भाई अली अकबर के बारे में पूछा। इमाम ने उन्हें बताया कि सभी शहीद हो चुके हैं। इसके बाद उन्होंने बेटी सकीना से भी अलविदा लिया, जिसने प्यास लगने की बात कहते हुए कहा कि वह अपने बाबा के सीने पर लेटे बिना नहीं सो सकती। इमाम हुसैन ने जवाब दिया कि अब जन्नत में जाकर अपने दादा हज़रत अली से कौसर का पानी पीना।
मौलाना ने कहा कि जब इमाम हुसैन ने यजीदियों के खिलाफ जंग लड़ी, तो एक आवाज आई — “बस ऐ हुसैन, अब तलवार म्यान में रख दो, हमने तुम्हें आजमा लिया।” इसके बाद दुश्मन की फौजों ने चारों तरफ से हमला किया। किसी ने तीर चलाया, किसी ने तलवार, और जिनके पास कुछ नहीं था उन्होंने पत्थर फेंके। अंत में, इमाम ज़ख्मी होकर ज़मीन पर गिर पड़े और शिम्र लईं ने उन्हें शहीद कर दिया।
मजलिस के बाद अलम व इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ताबूत का जुलूस निकाला गया जो हुसैनी मिशन इमामबाड़ा से शुरू होकर साकची गोलचक्कर तक गया और फिर इमामबाड़े पर वापस आकर समाप्त हुआ। इस दौरान अकीदतमंदों ने नौहाखानी, सीना-जनी और मातम करते हुए करबला के शहीदों को याद किया। शहर के विभिन्न इलाकों से बड़ी संख्या में लोग जुलूस में शामिल हुए और शहादत की इस याद को आंखों में आंसू लेकर ताज़ा किया।