रांची : सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में चार आपराधिक अपीलों पर फैसला सुनाया, जो लगभग तीन वर्षों से सुरक्षित रखी गई थीं। इन मामलों में चार दोषियों को बरी कर दिया गया, जो बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार, रांची में एक दशक से अधिक समय से बंद थे।
इन दोषियों की अपीलें झारखंड हाईकोर्ट में 2 से 3 साल पहले सुनी गई थीं और फैसले सुरक्षित रख लिए गए थे, लेकिन आदेश जारी नहीं किए गए थे। इसके बाद इन कैदियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने जब इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी, तब जाकर हाईकोर्ट ने तीन दोषियों को बरी कर दिया और चौथे मामले में विभाजित फैसला दिया। हालांकि, सभी चारों को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया गया।
इन दोषियों में से सभी अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। उन्हें पहले हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में दोषी ठहराया गया था और उम्रकैद की सजा दी गई थी। इनमें से एक कैदी 16 वर्षों से जेल में था, जबकि बाकी 11 से 14 वर्षों तक जेल में रह चुके थे।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह शामिल थे, ने इस मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता फौज़िया शकील ने अदालत को बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के सात दिन बाद भी केवल एक दोषी को रिहा किया गया है, जबकि बाकी अभी भी जेल में हैं।
अदालत ने जब इस देरी का कारण पूछा तो बताया गया कि यह संभवतः आदेशों के जेल तक न पहुंचने के कारण हुआ। राज्य की ओर से उपस्थित वकील ने समय मांगा और दोपहर 2 बजे तक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया। सुनवाई के दूसरे हिस्से में अदालत को बताया गया कि सभी चारों दोषियों को रिहा कर दिया गया है।
राज्य की ओर से बताया गया कि तीन दोषियों की रिहाई में देरी का कारण रिहाई आदेशों का जेल तक न पहुंचना था। अधिवक्ता शकील ने अदालत का आभार जताया और यह भी बताया कि अदालत ने झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि ऐसे ही 10 अन्य कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान की जाए, ताकि उनके लिए भी उचित कार्यवाही शुरू की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह जल्द ही कुछ अनिवार्य दिशानिर्देश जारी करेगा ताकि न्यायिक व्यवस्था में लोगों का भरोसा बना रहे।
क्या है मामला
याचिका में कहा गया था कि सभी चार दोषी बीरसा मुंडा सेंट्रल जेल, होटवार, रांची में बंद थे और उन्होंने अपने दोषसिद्धि के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में अपील की थी। ये फैसले 2022 में सुरक्षित रखे गए थे, लेकिन वर्षों बाद भी उन्हें सुनाया नहीं गया। याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि फैसले में देरी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, जिसमें ‘त्वरित न्याय’ का अधिकार शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि वे 31 जनवरी 2025 तक उन मामलों की रिपोर्ट पेश करें जिनमें फैसले सुरक्षित रखे जाने के बावजूद अब तक सुनाए नहीं गए हैं।
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