स्पेशल डेस्क : चक्रवाती तूफान मिचौंग की हलचल तेज है। इसको लेकर मौसम विभाग अलर्ट भी जारी कर रहे हैं। मिचौंग तूफान की तरह हम हर साल किसी ना किसी नए तूफान का नाम सुनते हैं। हालांकि, क्या आपने यह सोचा है कि तूफानों का नाम कैसे रखा जाता है?
64 देशों के पास है नाम रखने की जिम्मेदारी
गौरतलब है कि हर तूफान का एक अलग नाम रखा जाता है। इसकी जिम्मेदारी 13 देशों के पास है। इनका नामकरण सिस्टमेटिक तरीके से होता है। विश्व मौसम विभाग संगठन के तहत आने वाले दुनिया में स्थित वॉर्निंग सेंटर की तरफ से नामकरण किया जाता है। जिन देशों में चक्रवात के प्रभाव की आशंका होती है, उन्ही देशों का समूह तूफान का नाम रखता है। जान लें कि तूफान का नाम रखने वाले देशों के इस समूह में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, ओमान, ईरान, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, सउदी अरब, कतर, यमन और यूएई शामिल हैं। चक्रवाती तूफान का नाम 64 देश अपनी बारी आने पर रखते हैं। अल्फाबेट के अनुसार, देशों को चक्रवात तूफान का नाम रखने का मौका मिलता है।
10 नामों को सूची तैयार की जाती है
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग संगठनों द्वारा चक्रवातों का नाम रखा जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन और राष्ट्रीय मौसम विज्ञान सेवाओं जैसी संस्थाओं द्वारा नाम के चुनाव में अहम भूमिका होती है। प्रत्येक देश 10 नामों की एक सूची तैयार करता है, जो उन्हें चक्रवात के नाम के लिए उपयुक्त होती है। इन सूची में से किसी नाम का चुनाव कर चक्रवात को नाम दिया जाता है। 2017 में आए ओखी तूफान का नाम बांग्लादेश द्वारा रखा गया था।
दो व्यवस्थाओं के तहत दिया जाता है नाम
चक्रवातों के नाम रखने की दो व्यवस्थाएं प्रचलन में हैं। पहली के तहत दुनियाभर के चक्रवातों के नाम रखे जाते हैं। वहीं, दूसरी व्यवस्था के तहत अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठे चक्रवातों के नाम रखे जाते हैं। क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्र दुनियाभर के किसी भी महासागरीय बेसिन में बनने वाले चक्रवातों को नाम देते हैं। आईएमडी भी दुनिया के उन्हीं 6 क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र में शामिल है। आईएमडी उत्तरी हिंद महासागर में बनने वाले चक्रवातों का नामकरण करता है।
वर्ष 2000 से शुरू हुआ प्रचलन
चक्रवातों के नाम रखने की शुरुआत की बात करें, तो वर्ष 2000 में इसको लेकर विश्व मौसम संगठन यूनाइटेड नेशन इक्नॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड पेसेफिक के 27वें सत्र में इसको लेकर सहमति बनी थी कि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वालों तूफानों का नामकरण किया जाएगा। इसके बाद भारत ने इस पर पहल की थी, जिसके फलस्वरूप 2004 में इसकी व्यवस्था शुरू हुई। बता दें कि इन क्षेत्रों में उठने वाले ऐसे किसी भी तूफान का नाम रखना जरूरी है, जिसकी रफ्तार 34 किमी नॉटिकल मील प्रति घंटा से अधिक होगी। इसके तहत भारत का मौसम विभाग उत्तर हिंद महासागर में उठने वाले तूफानों का नामकरण करता है। अगर तूफान की रफ्तार 74 मील प्रति घंटे तक पहुंच जाती है, तो इसे हरिकेन, साइक्लोन या टाइफून माना जाता है।
पुरुष, महिला, फूल आदि पर रखे जाते हैं तूफानों के नाम
ऑस्ट्रेलिया द्वारा पहले तूफानों का नाम भ्रष्ट नेताओं के नाम पर सुझाया जाता था। वहीं, अमेरिका में आने वाले तूफानों के नाम अधिकतर महिलाओं के नाम पर रखे जाते रहे हैं। 1979 के बाद इसमें कुछ बदलाव किए गए और इसमें पुरुषों का भी नाम शामिल किया जाने लगा। उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में आने वाले तूफानों के ज्यादातर नाम फूलों, जानवरों, पक्षियों, पेड़ों, खाद्य पदार्थों के नाम पर रखे गए।
क्यों जरूरी है चक्रवात का नाम
चक्रवातों का नामकरण कई कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, जब किसी क्षेत्र में कई तूफान आते हैं, तो यह भ्रम से बचने में मदद करता है। दूसरा यह चक्रवातों के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और आपदा तैयारियों को बढ़ावा देने में मदद करता है। इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट पूरी दुनिया के 6 रीजनल स्पेशलाइज्ड मेट्रोलॉजिकल सेंटर का हिस्सा है। भारत भी तूफानों का नाम रखने में योगदान देता है। सोमालिया में आए चक्रवाती तूफान का नाम निवार रखा गया था। इस नाम का मतलब रोकथाम है, जिसका चुनाव भारत द्वारा किया गया था।
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