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रश्मि शर्मा ‘सपनों के ढाई घर’ पर हुई चर्चा, कमलेंदु की पुस्तक लोकार्पित

रश्मि शर्मा की कहानियों की स्त्री चाहे मध्यवर्ग की हो या निम्नवर्ग की, उनका स्वर बहुत लाउड नहीं है। वे बड़ी सहजता और मजबूत इरादों के साथ अपने जीवन, सपनों और महत्त्वाकांक्षाओं के लिए संघर्ष करती हैं।

by Reeta Rai Sagar
Jamshedpur LBSM college.
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जमशेदपुर : करनडीह स्थित एलबीएसएम कॉलेज के सभागार में शनिवार को साहित्य कला फाउंडेशन और एलबीएसएम कॉलेज की ओर से चर्चित कहानीकार रश्मि शर्मा के कहानी संग्रह-‘सपनों के ढाई घर’ पर चर्चा और पाठक- लेखक संवाद हुआ। इस मौके पर डॉ. कमलेश कुमार कमलेंदु की पुस्तक ‘सांप्रदायिकता की आर्थिक पृष्ठभूमि (1906-1947)’ का लोकार्पण भी हुआ।

इस अवसर पर कॉलेज के प्राचार्य डॉ अशोक कुमार झा ‘अविचल’ ने शॉल और पुस्तक से अतिथियों का स्वागत किया। स्वागत भाषण में उन्होंने कहा कि साहित्य सिर्फ संस्कार ही नहीं देता, बल्कि संस्कृति का निर्माण भी करता है। भारत में प्रश्न करने को अच्छा समझा जाता है। हमारी परंपरा में सांप्रदायिकता नहीं है। यहां ईश्वर को न मानने वाला भी रह सकता है। उन्होंने सांप्रदायिकता को केवल आर्थिक मसला मानने के नजरिए से असहमति जाहिर की।

कुंठारहित, अधिक जनतांत्रिक व नए मानवीय स्त्री-पुरुषों के आगमन की सूचना

‘सपनों के ढाई घर’ कहानी संग्रह पर चर्चा की शुरु‌आत करते हुए हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सुधीर कुमार ने कहा कि रश्मि शर्मा की कहानियां आधुनिक भारतीय स्त्री के अस्तित्व, प्रेम, पहचान और स्वतंत्रता की कामना की कहानियां हैं। इन कहानियों में वैयक्तिक अनुभववाद भी है और मनुष्यता और समाज के प्रति गहरे सरोकार भी हैं।

विषय प्रवेश के दौरान डॉ. सुधीर ने विस्तार से संग्रह की सारी कहानियों का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि रश्मि शर्मा की कहानियों की स्त्री चाहे मध्यवर्ग की हो या निम्नवर्ग की, उनका स्वर बहुत लाउड नहीं है। वे बड़ी सहजता और मजबूत इरादों के साथ अपने जीवन, सपनों और महत्त्वाकांक्षाओं के लिए संघर्ष करती हैं। ये कहानियां कुंठारहित, अधिक जनतांत्रिक और नए मानवीय स्त्री-पुरुषों के आगमन की सूचना देती है।

दादी से कहानियां सुनना प्रेरणा

डॉ. क्षमा त्रिपाठी से इस कहानी संग्रह के संदर्भ में बातचीत करते हुए कहानीकार रश्मि शर्मा ने कहा कि वे बचपन में अपनी दादी से कहानियां सुनती थीं। उन्होंने लेखन की शुरुआत कविता से की, परंतु जब लगा कि कविता में पूरी बात नहीं कह पा रही हैं, तो कहानियां लिखना आरंभ किया। पहली कहानी छपी, तो तीन पाठ‌कों की प्रतिक्रिया मिली, जिससे उनका उत्साह बढ़ा। ‘कबीरा खड़ा बाजार में’ की आदिवासी स्त्री के ईसाई बनने को उन्होंने धर्म-परिवर्तन की बजाए प्रेम में उत्पन्न विडंबना और रूढ़ीग्रस्त समाज की सच्चाई बताया।

कहानियां दिल की धड़कन होती हैं

संचालक डॉ. विनय कुमार गुप्ता ने कहा कि कहानियां दिल की धड़कन होती हैं। ज्ञान के लिए जिज्ञासा जरूरी होती है।

लेखक-पाठक संवाद के दौरान प्रो. रितु ने पूछा कि ‘सपनों के ढाई घर’ के अंत को खुला रखने का कारण क्या है? कहानीकार का जवाब था कि जान-बूझकर खुला छोड़ दिया है, ताकि पाठक अपने अनुसार अंत तय कर सकें।

कहानी में अपने व्यक्तिगत अनुभव होते हैं

स्नातकोत्तर हिंदी की छात्रा पूजा बास्के के सवाल का जवाब देते हुए रश्मि शर्मा ने कहा कि कहानी में अपने व्यक्तिगत अनुभव होते हैं, पर असल चीज यह है कि परकाया प्रवेश जरूरी है। उन्होंने यह भी बताया कि पत्रकारिता के अनुभव से भी उन्हें मदद मिली।

इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखिका डॉ. विजया शर्मा, आदित्या इंस्टीट्‌यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सुजय कुमार, डॉ. शबनम परवीन, प्रो. विकास मुंडा, प्रो. संतोष राम, प्रो. प्रमिला किस्कू, डॉ. कुमारी रानी, प्रो. शिप्रा बोयपाई, डॉ. संतोष कुमार, कवि सुजीत कुमार एवं अन्य उपस्थित थे। राष्ट्रगान जन गण मन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

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