एंटरटेनमेंट डेस्क। सान्या मल्होत्रा अपनी हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘मिसेज’ की सफलता का आनंद ले रही हैं। इस फिल्म को एक टॉक्सिक मैरिज और उसमें होने वाले उत्पीड़न की सटीक तस्वीर पेश करने के लिए सराहा जा रहा है। हालांकि, इस बीच एक पुरुषों के अधिकार संगठन ने मिसेज पर ‘विषैले नारीवाद’ का प्रचार करने का आरोप लगाया है।
X हैंडल पर जारी किया बयान
हाल ही में, एक पुरुषों के अधिकार संगठन SIFF – Save Indian Family Foundation ने अपने आधिकारिक X हैंडल पर एक लंबा बयान जारी किया, जिसमें फिल्म मिसेज की आलोचना की गई। इसमें कहा गया कि पुरुष घर से बाहर घंटों काम करते हैं और फिल्म को निशाना बनाते हुए कहा गया, “एक खुशहाल युवा महिला जो खाना बना रही है, बर्तन धो रही है और अपने ससुर के कपड़े प्रेस कर रही है, क्या यह उसकी उत्पीड़न है?”
संगठन ने आगे कहा, “महिलाएं स्वाभाविक रूप से मानती हैं कि वर्कप्लेस एक आरामदायक एयर कंडीशन्ड जगह होती है। वे निर्माण स्थलों या रेलवे स्टेशनों आदि को कार्यस्थल के रूप में नहीं मानतीं। वे यह भी नहीं मानतीं कि एयर कंडीशन में काम करना भी काफी तनावपूर्ण और अवसादजनक हो सकता है।”
खाना बनाना ध्यान साधना जैसा होता है- SIFF
SIFF ने यह भी तर्क दिया कि खाना बनाना “ध्यान साधना” जैसा होता है और कपड़े धोना “तनावपूर्ण” नहीं है। संगठन ने यह भी कहा कि पुरुषों को कभी भी 50% घर के काम में हाथ नहीं बंटाना चाहिए, क्योंकि 70-80% तक घर का सामान, कपड़े, फर्नीचर और गैजेट्स महिलाओं द्वारा ही पसंद किए जाते हैं और उनका आनंद भी वही लेती है।
मिसेज के प्रशंसकों ने पुरुषों के संगठन की आलोचना की इस पोस्ट ने कई लोगों को हैरान और निराश कर दिया। कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस पर प्रतिक्रिया दी और संगठन की आलोचना की, साथ ही फिल्म द्वारा प्रस्तुत किए गए सत्य को “डाइजेस्ट” करने को कहा।
फैन ने की बयान की आलोचना
एक फैन ने लिखा, “यह इतनी बुरी तरह से लिखा गया पोस्ट है, जिसमें कोई सही शोध नहीं किया गया। महिलाएं निर्माण स्थलों, स्टेशनों, हवाई अड्डों, कारखानों, अदालतों, पुलिस स्टेशनों, रेस्तरां और सेना में भी काम करती हैं और केवल तब उन्हें ‘अनुमति’ दी जाती है जब वे घर का काम भी संभालने को राजी होती है। तो घर का काम एक अतिरिक्त जिम्मेदारी है, जो कार्य के अलावा किया जाता है। क्योंकि पति-पत्नी दोनों एक ही भूमिका में होते हुए भी पुरुष घर आकर गर्म रोटियां मांगते हैं और महिला उन रोटियों को बनाती है।
“अंधे युग” से बाहर आएं- सोशल मीडिया यूजर
एक अन्य यूज़र ने संगठन से कहा कि वह “अंधे युग” से बाहर आएं। “अब महिलाएं भी उन सभी जगहों पर काम करती हैं। और एक खुशहाल युवक भी उन सभी घर के कामों का आनंद ले सकता है, जिनका आपने उल्लेख किया। असली उत्पीड़न तो आपकी मूर्खतापूर्ण विचारधाराओं को सहने में है, जो बिना किसी कारण के हमारे टाइमलाइन पर दिखते हैं।”