फीचर डेस्क : हिंदू धर्म में शिवलिंग को ओंकार का प्रतीक माना गया है, जो ब्रह्मांड के सूक्ष्म और स्थूल दोनों रूपों को दर्शाता है। ब्रह्मांड की तरह ही शिवलिंग का न आदि है और न अंत। लिंग पुराण और शिव पुराण के अनुसार, लिंग रूप में शिव ही ब्रह्मांड के मूल कारण हैं। इसी कारण शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है।
Shivling ki utpatti : लिंग शब्द का अर्थ और उसका महत्व
लिंग का शाब्दिक अर्थ है – चिह्न या संकेत होता है। स्कंद पुराण में कहा गया है – ‘लय नाल्लिंगमुच्यते’ अर्थात जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि का लय होता है, वही लिंग कहलाता है। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपरी भाग में शिव का वास माना गया है। इसीलिए शिवलिंग की पूजा, त्रिदेवों की पूजा मानी जाती है।
ब्रह्मा और विष्णु के विवाद से उत्पन्न हुआ शिवलिंग
स्कंद पुराण के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति के बाद ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। ब्रह्मा ने कहा कि वह सृष्टिकर्ता हैं, जबकि विष्णु ने खुद को पालनकर्ता बताते हुए श्रेष्ठ बताया। तभी उनके मध्य एक अद्भुत, आकाश से पाताल तक फैला ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ।
Shivling ki utpatti : ज्योतिर्लिंग की खोज में असफल रहे ब्रह्मा और विष्णु
उस रहस्यमयी ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत न जान पाने के कारण दोनों देवता अलग-अलग दिशाओं में उसके छोर की खोज में निकले। विष्णु ने हार मान ली, लेकिन ब्रह्मा ने असत्य कहा कि वह छोर तक पहुंच गए हैं और केतकी पुष्प को झूठी गवाही में शामिल कर लिया।
शिव का प्राकट्य और सत्य का उद्घाटन
ब्रह्मा के असत्य वक्तव्य पर आकाशवाणी हुई और तत्क्षण भगवान शिव त्रिशूल धारण किए प्रकट हुए। उन्होंने बताया कि वही सृष्टि के आदि कारण हैं और ब्रह्मा-विष्णु उनके ही रूप हैं। असत्य बोलने के लिए ब्रह्मा को दंड मिला और केतकी पुष्प को पूजा से वंचित कर दिया गया।
शिवलिंग पूजा की परंपरा की शुरुआत
इस घटनाक्रम के बाद ही भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप की पूजा आरंभ हुई। स्कंद पुराण के अनुसार, जो भक्त विधिपूर्वक शिवलिंग की आराधना करता है, उसे मोक्ष, ज्ञान और कल्याण की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि श्रावण सोमवारी के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक और पूजन का विशेष महत्व होता है।

