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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लॉ ग्रेजुएट्स को बड़ी राहत, कहा- अतिरिक्त ‘वैकल्पिक’ शुल्क नहीं ले सकते स्टेट बार काउंसिल व बीसीआई

याचिका में आरोप लगाया गया था कि कर्नाटक राज्य बार काउंसिल सहित कुछ अन्य बार काउंसिलों द्वारा नामांकन के लिए अत्यधिक शुल्क वसूलने के पिछले साल के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।

by Reeta Rai Sagar
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New Delhi : देश के विधि स्नातकों (Law Graduates) और युवा वकीलों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि वकीलों के रूप में नामांकन के लिए राज्य बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा वैधानिक शुल्क के अलावा कोई भी ‘वैकल्पिक’ शुल्क नहीं वसूला जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ कर्नाटक राज्य बार काउंसिल को ऐसी किसी भी तरह की राशि वसूलना तुरंत बंद करने का निर्देश दिया है।

वैकल्पिक जैसा कुछ नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने केएलजेए किरण बाबू द्वारा दायर एक अवमानना याचिका पर यह निर्देश दिया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि कर्नाटक राज्य बार काउंसिल सहित कुछ अन्य बार काउंसिलों द्वारा नामांकन के लिए अत्यधिक शुल्क वसूलने के पिछले साल के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।

बीसीआई ने क्या कहा था अपने हलफनामे में…

इस मामले में BCI ने अपने हलफनामे में कहा था कि सभी राज्य बार काउंसिल सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर रही हैं। उन्होंने बताया कि कर्नाटक राज्य बार काउंसिल पहचान पत्र, प्रमाण पत्र, कल्याण निधि और प्रशिक्षण जैसी चीजों के लिए 6,800 रुपये लेती है, जबकि 25,000 रुपये का शुल्क ‘वैकल्पिक’ है, अनिवार्य नहीं।

इस पर पीठ ने 4 अगस्त के अपने आदेश में स्पष्ट किया, “हम यह स्पष्ट करते हैं कि वैकल्पिक जैसा कुछ नहीं है। कोई भी राज्य बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया कोई भी राशि ‘वैकल्पिक’ के तौर पर नहीं वसूलेगी। उन्हें मुख्य फैसले में इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार ही फीस वसूलनी होगी।”

अत्यधिक शुल्क समानता के सिद्धांत के विपरीत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कर्नाटक राज्य बार काउंसिल वैकल्पिक रूप से कोई राशि वसूल रही है, तो भी इसे रोका जाना चाहिए। पिछले साल 30 जुलाई को शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि राज्य बार काउंसिल विधि स्नातकों से वकील के रूप में नामांकन के लिए अत्यधिक शुल्क नहीं ले सकतीं। कोर्ट ने इसे हाशिए पर पड़े और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के साथ भेदभाव बताया, जिससे कानूनी पेशे में उनकी भागीदारी कमजोर होती है।

उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुछ राज्य बार काउंसिल द्वारा 15,000 रुपये से लेकर 40,000 रुपये तक की अत्यधिक फीस वसूलना “मूल समानता के सिद्धांत के विपरीत” है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि राज्य बार काउंसिल और BCI संसद द्वारा तय की गई राजकोषीय नीति में बदलाव या संशोधन नहीं कर सकते।

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