नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस बात को रेखांकित किया है कि न्यायिक आदेशों के शीघ्र पालन को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रणाली स्थापित करना सरकार के विशेष कार्यकारी क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायाधीश तुषार राव गेडेला की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने उस याचिका को निस्तारित किया, जिसमें सरकारी विभागों में ‘संविधानिक अक्षमताओं और नौकरशाही की सुस्ती’ का हवाला देते हुए अदालत के आदेशों के क्रियान्वयन में हो रही देरी पर चिंता व्यक्त की गई थी।
पीठ ने कहा, ‘न्यायिक निर्देशों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी तंत्र तैयार करना केवल कार्यपालिका की जिम्मेदारी है। हालांकि हम देरी और अनुपालन में कमी की चिंताओं को समझते हैं, यह सरकार पर निर्भर है कि वह एक मजबूत प्रणाली विकसित करे’।
इससे संबंधित याचिका को कोरे निहाल प्रमोद द्वारा अधिवक्ता राजा चौधरी और अधिवक्ता सान्यम जैन के माध्यम से दायर किया गया था। उनका तर्क था कि अदालत के आदेशों का समय पर पालन में सरकारी निष्क्रियता न केवल विवादियों को कठिनाइयों का सामना कराती है, बल्कि न्यायपालिका में जनता का विश्वास भी कमजोर करती है।
याचिका में कई उपायों का प्रस्ताव रखा गया था, जिनमें सरकारी विभागों में न्यायिक आदेशों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए अनुपालन सेल्स का निर्माण और एक अनुपालन ट्रैकिंग प्रणाली की स्थापना शामिल थी, जिससे अदालतें और आदेशधारक प्रगति पर निगरानी रख सकें।
इसके अतिरिक्त, याचिका में आंतरिक ऑडिट, अदालत रजिस्ट्री का नियमित अनुपालन रिपोर्टिंग और आदेशों को लागू करने में विफल अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई जैसे जवाबदेही तंत्र की भी मांग की गई थी।
‘अनुपालन सुनिश्चित करें’
याचिका में यह दावा किया गया था कि सरकारी अधिकारी अक्सर अनुपालन न करने पर किसी वास्तविक परिणाम का सामना नहीं करते, इसलिए एक संरचित ढांचे की आवश्यकता है, जिसमें वास्तविक समय में ट्रैकिंग और नियमित रिपोर्टिंग की व्यवस्था हो।