जमशेदपुर / रांची : झारखंड के राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने मंगलवार को पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) के चाकुलिया में आयोजित ‘परंपरागत स्वशासन व्यवस्था’ पर एक वर्चुअल संवाद कार्यक्रम में भाग लिया। अपने संबोधन में उन्होंने झारखंड की जनजातीय संस्कृति में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की विशेष भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था न केवल जनजातीय संस्कृति का संरक्षण करती है, बल्कि ग्रामीण समाज की समस्याओं का समाधान भी प्रदान करती है।
मानकी-मुण्डा, पाहन, प्रधान और मांझी की स्वशासन व्यवस्था
राज्यपाल ने कहा कि झारखंड में जनजातीय समुदायों का परंपरागत स्वशासन व्यवस्था पर गहरा विश्वास है। उन्होंने बताया कि मानकी-मुण्डा, पाहन, प्रधान और मांझी जैसी स्वशासन व्यवस्थाएं वर्षों से जनजातीय समाज की रीढ़ बनी हुई हैं। राज्यपाल ने इस व्यवस्था को और मजबूत बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
पेसा अधिनियम का महत्व और राज्य सरकार से अपेक्षाएं
राज्यपाल ने पेसा अधिनियम का जिक्र करते हुए कहा कि इस अधिनियम के तहत पारंपरिक स्वशासन व्यवस्थाओं को विशेष अधिकार और शक्तियां प्रदान की गई हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि झारखंड में अभी तक पेसा नियमावली लागू नहीं हो सकी है और राज्य सरकार को इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।
समाजिक कुरीतियों को दूर करने की अपील
राज्यपाल ने जनजातीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, जैसे डायन प्रथा, को समाप्त करने के लिए परंपरागत स्वशासन व्यवस्थाओं को प्रभावी बनाने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा कि यदि यह व्यवस्था प्रभावी तरीके से कार्य करें तो यह कुप्रथाओं से जनजातीय समाज को मुक्ति दिलाने में सहायक हो सकती है।
केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ सभी तक पहुंचे
राज्यपाल ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता जताई कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ प्रत्येक ग्रामवासी तक पहुंचे। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए जागरूक रहें और नियमित संवाद स्थापित करें।
सदैव नागरिकों के साथ संवाद के लिए तैयार : राज्यपाल
राज्यपाल ने यह भी कहा कि वे पांचवीं अनुसूची के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए सदैव तत्पर हैं। उन्होंने नागरिकों से यह भी कहा कि वे अपनी समस्याओं को लेकर कभी भी राजभवन से संपर्क कर सकते हैं, क्योंकि राजभवन के द्वार हमेशा उनके लिए खुले हैं।