Jharkhand Shaharnama : एक समय था, जब झारखंड को ही राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाता था। यह तमगा आज भी नहीं छिना है, लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं, मानगो की। जो नगर निगम बनने के नौ वर्ष बाद भी अक्षेस की भूमिका निभा रहा है। हालिया रिसर्च जाम को लेकर हो रहा है। माननीय अदालत के आदेश पर एक-दो दिन उछलकूद मची, फिर वही ढाक के तीन पात हो गए। अब कोई कह रहा है कि फ्लाईओवर का काम बंद होने से जाम से निजात मिल जाएगी, तो एक नेताजी कह रहे हैं, काम बंद करने से कुछ नहीं होगा, पुल का तामझाम समेटना होगा। कल की ही बात है, दोपहर बाद तक वाहनों के पहिए जाम रहे। डेढ़ सौ जवान में से चौथाई भी नहीं दिख रहे थे। सभी वाहन चालक व सवार ऊपरवाले की ओर ध्यान लगाए रहे। जब उनकी कृपा हुई तो पहिए हिले।
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टाइगर को उल्टा लटका दिया
झारखंड में पहले दो टाइगर हुआ करते थे। एक को राज्यस्तरीय दर्जा प्राप्त था, जबकि दूसरे को प्रमंडलस्तरीय। पहले वाले स्वर्गसिधार गए, तो दूसरे वाले को राज्यस्तरीय बना दिया गया। बेचारे, पूरे राज्य में विचरण कर भी रहे हैं। हाल ही में एक माहौल बना, जिसका वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। उस विरोध प्रदर्शन में टाइगर के पुतले को उल्टा टांग दिया गया है। है तो यह गलत बात, लेकिन किसी को टाइगर का संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है, इसलिए उस; का विधिवत प्रतिकार भी नहीं किया जा रहा है। टाइगर के समर्थक भी चुप्पी साधे हुए हैं। कुछ ने कहा कि टाइगर अपने पुराने जंगल में ही उपेक्षित हो गया है। बूढ़ा हो गया है, इसलिए अब वह कंगन लेकर घूम रहा है। कोई उसके कंगन को नहीं पूछ रहा है, इसलिए मायूस दिख रहा है। उसे भी कंगन का लालच नहीं रहा।
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छका रहा मॉनसून
इस बार मॉनसून की जो बारिश हुई, उसने सबको इतिहास खंगालने पर मजूबर कर दिया। लगातार तीन दिन तक हुई मूसलाधार बारिश पर कोई 20, तो कोई 30 साल पुराना रिकॉर्ड टूटने की बात कह रहा है। अब तो लोग बारिश से इतने ऊब गए हैं कि इंद्र और वरुण देव सहित सभी देवी-देवताओं से गुहार लगा रहे हैं। गांवों में जितने टोटका-टोटरम हो सकते हैं, सब कर लिए गए। दुर्गापूजा भी शुरू हो गया, लेकिन लोग पंडाल घूमने तक का प्लान नहीं बना पा रहे हैं। जब आसमान थोड़ा साफ देखकर लोग निकल रहे हैं, तो ऊपर से असुगंधित स्प्रे का छिड़काव होने लगता है। ऐसे में महिलाओं-युवतियों के मेकअप की बात छोड़िए, पूरी ड्रेसिंग सेंस की मिट्टी-पलीद हो जा रही है। सब पूछ रहे हैं कि भगवान इस बार ओवरटाइम क्यों कर रहे हैं। वैसे इस बार पानीदार नेताओं को चेहरा मीडिया में नहीं चमका।
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जीएसटी का चक्कर
पूरे देश समेत अपनी लौहनगरी या कहें कोल्हान में भी जीएसटी को लेकर खूब चर्चा हो रही है। कोई कह रहा है कि बड़े-बड़े सामानों के दाम घट गए, जबकि रोजमर्रा के दूध-दही के दाम नहीं घट रहे। इसकी बात पूछने पर दुकानदार पुराना स्टॉक होने की बात भी नहीं कह पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि जैसे ही कहेंगे दूध एक महीना पुराना है, ग्राहक लड़ जाएगा। एक दुकानदार ने कहा कि मेटल से बने बर्तनों पर टैक्स घटा दिया गया है, लेकिन जिससे बर्तन बनते हैं, उस मेटल पर टैक्स 12 से 18 परसेंट कर दिया गया है। यह कैसी कटौती हुई, इसे तो अर्थशास्त्री ही बता पाएंगे। जहां तक कार-फ्रिज आदि की बात है, तो उसके बिना भी गरीब की जिंदगी कट जा रही है। आखिर जीएसटी घटने की खुशी क्यों मन रही है, गरीबों के भेजे में नहीं घुस रही है।
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