गुरु अपने भौकाल की कथा सुना रहे थे। पत्रकारों का एक झुंड सामने बैठा हां में हां मिला रहा था। वनांचल प्रदेश के नौकरशाही वाले मुहल्ले में गुरु की पैठ गहरी थी। लिहाजा, गुरु तक छन-छनकर आने वाली सूचनाओं को चुनौती देने का साहस कोई अदना नहीं कर सकता था। हर वाक्य पर मिल रही स्वीकृति से गुरु पूरे फार्म में आ गए थे। लाल फीताशाही के मौजूदा हालात ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया था। 
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गुरु की आवाज ऊंची होती जा रही थी। कार्यालय के गेट का दरवाजा खोलने के साथ गुरु के शब्द कानों में पड़े- मजाक बनाकर रख दिया है। पूरा माजरा समझने के लिए कक्ष में प्रवेश करते ही सवाल दाग दिया। किसने मजाक बनाया है गुरु? किसका मजाक बनाया है? उत्तर देते हुए गुरु बोले- आधी-अधूरी बात सुनोगे तो ऐसे ही सवाल पूछते फिरोगे। गुरु ने फरमाया तो दुरुस्त था। पूरी बात जाने बगैर प्रश्न किया गया था।
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लिहाजा यह प्रतिउत्तर स्वाभाविक था। आगंतुक की प्रतिक्रिया का इंतजार किए बिना गुरु प्रसंग पर कायम रहे। बोले- पहले ऐसा नहीं होता था। कुछ सालों में यह गिरावट आई है। अगर सीनियर, जूनियर को संरक्षण देने की बजाय षडयंत्र करने लगे तो यही होता है। कुछ लोगों ने अपनी कमाई बढ़ाने के लिए पूरे सिस्टम का कबाड़ा कर दिया है।
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अब तो आलम यह है कि इज्जत बचानी मुश्किल हो गई है। धीरे-धीरे बात समझ में आने लगी थी। दरअसल, गुरु अपनी ही बिरादरी पर भन्नाए हुए थे। गुरु जारी रहे। कहा- नए-नए बच्चे कमान पाने के लिए बड़े-बड़े मठाधीश के कान काट रहे हैं। कोई ठेकेदार से चालान कटा रहा है। कोई ससुराल से। वाक्य पूरा होने के साथ कहानी बिल्कुल साफ थी।
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गुरु का दुख और दुख का कारण दोनों पानी की तरह पारदर्शी हो गए थे। ज्ञान का मोती निकालना था। सो, गुरु के साथ दुख के सागर में गोते लगाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। गुरु के विराट अनुभव से सहमति जताते हुए कहा-सही कह रहे हैं गुरु। आने वाले सूरमा तो और चार कदम आगे हैं। सुना है कई जगह बिना पद के ही प्रसाद बटोर रहे हैं।
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गुरु बोले- बिल्कुल सही कर रहे हैं। कई होनहार पीडीए में डीडीए का मजा ले रहे हैं। कोई बोलने वाला नहीं, कोई देखने वाला नहीं। बात पूरी होने के साथ गुरु कुर्सी से उठे और कक्ष के दूसरे हिस्से में मौजूद शौचालय की तरफ बढ़ गए। सामने बैठे कई श्रोता सोच में डूब गए, ये डीडीए-पीडीए का क्या मामला है?
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