राजधानी वाले मुहल्ले में टहलते हुए फन्ने गुरु के चेले से मुलाकात हो गई। बातचीत आगे बढ़ी तो पता चला कि, जब से बसंत गुजरा है, गुरु फिल्मी धुन गुनगुना रहे हैं। गुरु फागुन के रंग में रंगे हैं या मुहल्ले की कोई नई खबर हाथ लगी है, पता नहीं। कहने वाले कहते हैं कि जब भी बदलाव की बयार उठती है, गुरु जंगल में मोर की तरह नाचने लगते हैं। कोयल की तरह गाने लगते हैं।

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इस बार माजरा क्या है? इसी जिज्ञासा में कदम खुद ब खुद गुरु के अड्डे की तरफ बढ़ चले। अचानक गुरु सामने से आते हुए दिखे। दूर से ही आवाज लगाई, और बच्चा क्या हाल है? शायद जिन सवालों को मन में लिए चल रहा था, वही पलटकर सामने आ गए। जल्दी-जल्दी में प्रतिउत्तर दिया, यही जानने तो आ रहा था। सुना है, पिछले कुछ दिनों से आप फिल्मी गाने सुना रहे हैं। गुरु को यह बात शायद ठीक नहीं लगी। जवाब दिया, तुम गीत सुनने आ रहे हो या खबर सुनने। देखो, हमसे झूठ न बोला करो। गुरु को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकता था।
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सो, अपनी पुरानी बात में सुधार कर फिर पेश कर दिया, कुछ भी सुना दीजिए गुरु। हम तो बस आपसे मिलने चले आए। गुरु मिलने का तात्पर्य समझ गए थे। इसलिए बिना देर किए अपनी शब्द शक्ति के विभिन्न प्रकारों अभिधा, लक्षणा, व्यंजना का उपयोग करते हुए कहानी सुनानी शुरू की। बोले :- देखो इस कहानी के सारे पात्र और घटनाएं हकीकत हैं। वास्तविक जीवन से इनका बड़ा गहरा लेना-देना है, लेकिन बात अपनी शैली में कहने की प्रवृत्ति है, सो समझने के लिए अपने ज्ञान और मस्तिष्क का उपयोग करो।
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कुछ समय पहले की बात है, कोल्हान नामक स्थान के पूर्वी मुहल्ले में आधी आबादी की विजय पताका लहरा रही थी। कुछ चाटुकार सत्ताधीश को नियमित खैरियत रिपोर्ट भेज रहे थे। अचानक एक दिन सत्ताधीश अपने लाव-लश्कर के साथ खुद मुहल्ले के भ्रमण पर निकल गए। सत्ताधीश के सम्मान में तरह-तरह के तोहफे पेश किए गए। यह बताने का भरपूर प्रयास किया गया कि सबकुछ चंगा सी, लेकिन इसी बीच किसी ने तोहफे का भेद खोल दिया। सत्ताधीश के हुकमरानों को दिखाया गया कि तोहफे के नीचे स्टीकर पर मेड इन टा लिखा हुआ है।
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यह बात सत्ताधीश को बहुत नागवार गुजरी। सत्ताधीश के राजधानी लौटते ही कोल्हान नगर के पूर्वी मुहल्ले से विजय पताका को हटाने का फरमान जारी कर दिया गया। कुछ दिनों तक विजय पताका यूं ही राजकोष में पड़ी रही। फिर कुछ समय गुजरा, दिन बदले। विजय पताका को छोटानगर के स्टील वाले मुहल्ले में शिफ्ट कर दिया गया। यह तो रही बात पुरानी, अब आगे की खबर यह है कि मौसम में बदलाव के साथ विजय पताका का भी स्थान परिवर्तन होने की प्रबल संभावना है।
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पूर्वी मुहल्ले में विजय पताका के सामने सलामी दे चुके कुछ सिपहसालार स्थान चयन में मददगार की भूमिका अपना रहे हैं। कहा जा रहा है कि विजय पताका का कोल्हान मोह अब तक भंग नहीं हुआ है। सो, शिफ्टिंग की स्थिति में कोल्हान नगर के दूसरे मुहल्ले का विकल्प उपलब्ध कराया गया है। अंतिम निर्णय फिर सत्ताधीश को करना है। अब चाहे जो हो, साल बदलने के दो माह गुजरने के बावजूद दिल हैप्पी न्यू ईयर के गाने गा रहा है- मनवा लागे, लागे रे सांवरे…।
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