Palamu/Ranchi (Jharkhand) : झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (JTET) की प्रस्तावित नियमावली में भोजपुरी, हिंदी और मगही जैसी प्रमुख भाषाओं को शामिल नहीं किए जाने पर राज्य में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए राज्य के वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने बुधवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर आपत्ति जताई और इन भाषाओं को नियमावली में शामिल करने की मांग की।
मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने उठाए नियमावली में विसंगति के सवाल
वित्त मंत्री किशोर ने अपने पत्र में लिखा कि शिक्षा विभाग द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट में पलामू, गढ़वा जैसे जिलों के लिए कुडुख और नागपुरी जैसी भाषाओं को अनिवार्य किया गया है, जबकि भोजपुरी और हिंदी, जो कि इन क्षेत्रों की प्रमुख भाषाएं हैं, को नजरअंदाज कर दिया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि नागपुरी भाषा को सादरी के नाम से भी जाना जाता है और यह देवनागरी या कैथी लिपि में लिखी जाती है।
किशोर ने सवाल उठाया कि जब इन जिलों में बोली जाने वाली मुख्य भाषाएं हिंदी और भोजपुरी हैं, तो फिर नियुक्ति के लिए इनकी अनिवार्यता क्यों नहीं है? उन्होंने मांग की कि शिक्षक पात्रता परीक्षा की भाषा सूची में हिंदी (देवनागरी) और भोजपुरी को भी स्पष्ट रूप से शामिल किया जाए।
जदयू ने लगाया सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप
इस मामले में प्रदेश जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। प्रदेश प्रवक्ता सागर कुमार ने राज्य सरकार पर भाषा आधारित तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए कहा कि जेटेट परीक्षा में सरकार ने जानबूझकर भोजपुरी और मगही जैसी लोकप्रिय भाषाओं को बाहर रखा है।
सागर कुमार ने कहा कि पलामू और गढ़वा जैसे जिलों में भोजपुरी और मगही सिर्फ बोली नहीं जाती, बल्कि यह पढ़ने-लिखने की भाषा भी रही है। इन भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा नहीं देना हजारों अभ्यर्थियों के साथ अन्याय है। उन्होंने मांग की कि खूंटी जिले में मुंडा समुदाय की भाषा ‘मुंडारी’ को भी स्थानीय भाषाओं की सूची में जोड़ा जाए।
सरकार दिखा रही बिहारी विरोधी सोच : सागर कुमार
JDU प्रवक्ता ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार ओड़िया, उर्दू और बांग्ला जैसी भाषाओं को तवज्जो दे रही है, जबकि बिहार मूल के लोगों की भावनाओं को लगातार ठेस पहुंचा रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरकार का यह रवैया “बिहारी विरोधी मानसिकता” को उजागर करता है।
JDU ने सभी प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं को समान सम्मान देने की मांग की है और सरकार से इस भेदभावपूर्ण भाषा नीति को शीघ्र सुधारने का आग्रह किया है।
कुल मिला कर माना जा रहा है कि झारखंड में जेटेट की नियमावली को लेकर उठे भाषाई विवाद ने एक बार फिर क्षेत्रीय पहचान और सम्मान की बहस को हवा दे दी है। अब देखना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस पर क्या रुख अपनाते हैं।