रांची: झारखंड सहित पूरे देश में साइबर अपराध एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। इन शातिर जालसाजों पर नकेल कसने के लिए झारखंड पुलिस ने एक अनूठी पहल की है। इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर की सहायता से विशेष तौर पर साइबर कमांडो तैयार किए जा रहे हैं। ये तकनीक-दक्ष पुलिस अधिकारी बिना हथियार और वर्दी के साइबर एक्सपर्ट के तौर पर पुलिस के लिए काम करेंगे।
साइबर कमांडो: डिजिटल अपराध के खिलाफ एक नई फौज
झारखंड में पहली बार साइबर अपराधियों से निपटने के लिए साइबर कमांडो तैयार किए जा रहे हैं। ये कमांडो साइबर अपराध की दुनिया की बारीकियों को समझकर, उन्हें प्रभावी ढंग से निपटाने में खुद को सक्षम बना रहे हैं। झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता ने बताया कि ये साइबर कमांडो ऐसे विशेषज्ञ होंगे जो साइबर नेटवर्क को क्रैक करने में माहिर होंगे।
साइबर कमांडो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित साइबर ट्रेनिंग के मॉडलों का भी गहन अध्ययन कर रहे हैं। वर्तमान में, पहले बैच में 372 पुलिसकर्मियों को साइबर कमांडो की ट्रेनिंग दी जा रही है। झारखंड पुलिस का मानना है कि डिजिटल क्राइम को रोकने में इन साइबर कमांडो की भूमिका बेहद अहम होगी।
प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर विशेष जोर
पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, साइबर कमांडो की ट्रेनिंग में केवल सैद्धांतिक जानकारी ही नहीं, बल्कि प्रैक्टिकल वर्क पर विशेष जोर दिया जा रहा है। ट्रेनिंग ले रहे पुलिस अधिकारियों को साइबर अपराध के तमाम तरीकों के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। इसमें देश और विदेश में हुए बड़े साइबर अपराध के मामले, अपराध के तरीके और लोगों को कैसे फंसाया जाता है, इसकी जानकारी शामिल है। इसके अलावा, उन्हें हाल के दिनों में हुई साइबर ठगी के मामलों में प्रभावी कार्रवाई करने, साइबर अपराधियों को पकड़ने और बैंक अकाउंट व अन्य जानकारियां हासिल करने की भी ट्रेनिंग दी जा रही है।
देश भर में साइबर कमांडो तैयार करने की कवायद
यह पहल केवल झारखंड तक सीमित नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में झारखंड सरकार को एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें बताया गया था कि इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर के जरिए देशभर में साइबर सुरक्षा को मजबूत किया जा रहा है। गृह मंत्रालय की योजना है कि अगले 5 वर्षों के दौरान 5000 से अधिक साइबर कमांडो को तैयार किया जाए। झारखंड की तरह, अन्य राज्यों में भी डिजिटल अपराधों से निपटने के लिए साइबर कमांडो तैयार किए जा रहे हैं, क्योंकि भविष्य में साइबर अपराध की चुनौतियां और बढ़ने वाली हैं।
क्यों पड़ी साइबर कमांडो की जरूरत?
झारखंड में साइबर अपराध से निपटने के लिए एक विशेष बल की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही थी। पिछले दस सालों के दौरान साइबर अपराध पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों के बावजूद, हर दिन साइबर अपराधियों का एक नया मॉड्यूल सामने आ जाता है, या फिर पुराने मॉड्यूल के ही नए कनेक्शन देखने को मिलते हैं। ताजा रिपोर्ट के अनुसार, साइबर अपराध का सबसे पुराना मॉड्यूल जामताड़ा आज भी सबसे ज्यादा ठगी को अंजाम दे रहा है। जामताड़ा मॉड्यूल साइबर ठगी का देशभर में सबसे पुराना मॉड्यूल है।
साइबर अपराध के लिए बदनाम प्रमुख जिले और ‘ट्रेसलेस’ स्कीम
झारखंड के चार जिले – जामताड़ा, धनबाद, गिरिडीह और देवघर साइबर अपराध के लिए देशभर में बदनाम हैं। इनमें आज भी सबसे खतरनाक जामताड़ा ही है, उसके बाद देवघर और गिरिडीह हैं। सीआईडी की साइबर क्राइम ब्रांच की रिपोर्ट के अनुसार, आज भी साइबर अपराध के देश के सबसे पुराने मॉड्यूल जामताड़ा ही सबसे ज्यादा एक्टिव हैं। साइबर अपराधियों ने जामताड़ा मॉड्यूल का विस्तार कर दिया है, जिसकी वजह से रिकॉर्ड में जामताड़ा सीधे तौर पर नहीं आता, लेकिन क्राइम वहीं से हो रहा है, या फिर जामताड़ा के साइबर अपराधी दूसरे राज्यों में जाकर अपराध कर रहे हैं।
पिछले दो सालों के दौरान सीआईडी की साइबर क्राइम ब्रांच की जांच में साइबर अपराधियों का विदेशी कनेक्शन भी सामने आ रहा है। दरअसल, विदेशी कनेक्शन को साइबर अपराध की दुनिया में लाने का श्रेय भी जामताड़ा मॉड्यूल को ही जाता है। जब झारखंड का जामताड़ा जिला साइबर अपराध के लिए बदनाम हुआ और देशभर की पुलिस वहां छापेमारी करने लगी, तब जामताड़ा मॉड्यूल ने खुद को हाईटेक करते हुए अपना कनेक्शन विदेश से जोड़ लिया। पहले जो ठगी के पैसे देश के अंदर फर्जी डॉक्यूमेंट पर खोले गए बैंक खातों में जाते थे, अब वही पैसे विदेशी अकाउंट में जाने लगे हैं।
पुलिस और प्रतिबिंब ऐप से बचने के लिए भी साइबर अपराधी नई जुगत लगा चुके हैं। यह जुगत भी जामताड़ा मॉड्यूल का ही विकसित किया गया है। अब जामताड़ा के खेतों और कस्बों से निकलकर, साइबर अपराध के नेटवर्क को लग्जरी कारों में बैठकर ऑपरेट किया जाने लगा है। पुलिस की ट्रैकिंग सिस्टम से बचने के लिए जामताड़ा के साइबर अपराधियों ने यह नया तरीका खोज निकाला है।
वे लग्जरी वाहनों में बैठकर एक शहर से दूसरे शहर घूमकर पुलिस को चकमा देते हुए अपने शिकार को फंसाते हैं। जब शिकार फंस जाता है, तब वे उसी शहर के एटीएम से पैसा गायब कर दूसरे शहर का रुख कर लेते हैं। ऐसे में जब पुलिस ट्रेस करती है, तो उनके वास्तविक लोकेशन का पता नहीं चल पाता है। पुलिस को साइबर अपराधियों के आगे वाले स्थान का लोकेशन हासिल होता है, लेकिन जब तक पुलिस वहां पहुंचती है, वे वहां से अपने शहर पहुंच चुके होते हैं, जहां से उन्हें ढूंढ पाना पुलिस के लिए काफी मुश्किल भरा काम होता है।
लगातार बढ़ रहे साइबर फ्रॉड के मामले
यह जानकर हैरानी होगी कि देश में पिछले 5 सालों में साइबर फ्रॉड के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। हाल ही में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार ने राज्यसभा में बताया था कि 2021 से 2025 के बीच साइबर अपराधों में करीब 900% की बढ़ोतरी हुई है। झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, राजस्थान, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और हरियाणा जैसे राज्यों में पिछले 5 सालों के दौरान 3 से लेकर 5 लाख लोगों के साथ ठगी हो चुकी है। यही वजह है कि देश के सभी राज्य अब साइबर कमांडो को ट्रेंड कर साइबर अपराधियों के खिलाफ इस लड़ाई में उन्हें शामिल कर रहे हैं।
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