हाल के दिनों में साफ-सफाई के लिए शहरों-पंचायतों को पुरस्कार बांटे गए। इन पुरस्कारों को न केवल गर्व के साथ ग्रहण किया गया, बल्कि उसका जश्न भी मनाया गया। इनमें वे लोग भी शामिल थे, जो दिन-रात कूड़ों का ढेर देखते हुए नाक पर रुमाल रख कर गुजरते हैं। संयोगवश उसी दिन यह खबर आई कि मानगो के डिमना रोड पर दोनों छोर के नालों की सफाई पंद्रह वर्ष से नहीं हुई है। उससे भी बड़ी बात कि जिम्मेदार इसका नाम भी नहीं सुनना चाहते हैं। नाला सफाई की बात सुनते ही उनकी नाक में सड़ांध घुस जाती है। खैर, पुरस्कार पर गर्व तो उन्हें भी है, जो बदबू में जी रहे हैं। जो ट्रॉफी लेकर आए, उनके टेबुल पर भी तमाम फाइलें पड़ी थीं, जिसमें जगह-जगह जलजमाव होने, नाली की सफाई कराने और घ्रर-फ्लैट में गंदा पानी घुसने की थी। पुरस्कार देने वाले का क्या दोष है।
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गोलचक्करों पर होगी धनखेती!
सावन शुरू होते ही धान की रोपनी भी तेज हो जाती है। ऐसे में नेताओं को प्रचार पाने के लिए धान की रोपनी करना बड़ा माध्यम बन जाता है। छोटे-बड़े नेता हल चलाते या धान रोपते हुए फोटो खिंचाने लगते हैं। इसमें शहर के नेता भी आसपास के खेत में चले जाते हैं। अखबारों और सोशल मीडिया में इन्हें प्रचार पाते देख शहरी नेता इस बात की मांग करने लगे हैं कि उन्हें गोलचक्करों या डिवाइडर पर धान रोपने का अवसर दिया जाए। ऐसे में नगर व जिला प्रशासन भी मुश्किल में पड़ गया है। खैर, धान रोपना विरोध का भी तरीका हो गया है। गाहे-बगाहे हर साल ऐसे सीन दिख जाते हैं, जब सड़क पर बने गड्ढों में राजनीतिक कार्यकर्ता उसी गड्ढे में धान रोप देते हैं। उन्हें पता है कि बरसात के बाद सड़क की मरम्मत तो होगी ही, इसलिए ऐसा कर लेना चाहिए।
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लेट हो गई बारिश की चेतावनी
एआई के इस युग में भी मौसम या बारिश की चेतावनी लेट से दी जा रही है। पिछले दिनों ऐसा ही देखने को मिला। कुछ जिलों में भारी बारिश की चेतावनी के साथ स्कूलों को बंद रखने का फरमान जारी किया गया। किसी जिले में यह सूचना शाम पांच-छह बजे दी गई, तो कहीं रात आठ और कहीं रात 11 बजे तक चेतावनी जारी की गई। नतीजतन, कड़ी चेतावनी के बाद भी कुछ स्कूल सुबह में खुल गए। बच्चे भी आ गए, आदेश की बात मालूम होते ही कुछ ही देर में छुट्टी दे दी गई। अभिभावकों का कहना था कि इसमें स्कूल या बच्चों का क्या दोष है, चेतावनी ही लेट से मिली। खैर, गनीमत रही कि उस दिन बारिश नहीं हुई। इससे स्कूल खोलने वाले भी कार्रवाई से बच गए। यदि सचमुच भारी बारिश हो जाती, तो क्या होता, आप ही बताएं।
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समाज में कुछ ठीक नहीं
कारोबारियों के समाज में कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अंदर ही अंदर चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। बाहर भले किसी को जानकारी नहीं हो, लेकिन समाज के अंदर इसकी तैयारी को लेकर उथल-पुथल मची हुई है। सिटिंग कैंडिडेट को किसी भी हाल में सबक सिखाने को समाज गोलबंद हो चुका है। इस बार एक ऐसे नेता को जमीन पर पटकने की साजिश रची गई है, जो हर समय सत्तासीन नेताओं की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार करने की जुगत रखता है। बड़े-बड़े बयान और आलेखों के जरिए प्रचार पाने की कोशिश में जुटा रहता है। मजे की बात है, इस बार उसे ऐसे उम्मीदवार से टक्कर दिलाने की तैयारी है, जिसने पहले तन मन धन से खूब साथ दिया था। अब वही बागी तेवर अपनाए हुए है। देखने वाली बात होगी कि इस बागी उम्मीदवार को समाज में कितना समर्थन मिल पाता है।
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