देवघर: झारखंड का देवघर जिला केवल बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के लिए ही नहीं, बल्कि उससे जुड़े कई पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है। इन स्थलों में से एक है शिवगंगा धाम, जिसे एक पवित्र कुंड के रूप में पूजा जाता है। यह तालाब रावण से जुड़ी एक प्राचीन कथा के कारण धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
पौराणिक कथा: रावण के मुक्के से निकला पाताल जल
मान्यता है कि जब रावण भगवान शिव को कैलाश पर्वत से लंका ले जा रहे थे, तभी उन्हें लघुशंका लगी। इसके बाद हाथ धोने के लिए उन्होंने आसपास पानी तलाशा, लेकिन कुछ नहीं मिला। तब रावण ने अपनी मुट्ठी से धरती पर प्रहार किया और वहां से जलधारा निकलने लगी। यही जलधारा बाद में शिवगंगा तालाब का रूप ले गई। इसे पाताल गंगा भी कहा जाता है और यह विश्वास है कि यह कुंड कभी नहीं सूखता।
शिवगंगा का धार्मिक महत्व
-शिवगंगा धाम बाबा बैद्यनाथ मंदिर के समीप स्थित है।
-श्रद्धालु पहले शिवगंगा में स्नान कर फिर बाबा बैद्यनाथ पर जलाभिषेक करते हैं।
-यहां स्नान को पापों के शमन और कष्टों की निवृत्ति का प्रतीक माना जाता है।
-मंदिर के वरिष्ठ पुजारी राजेंद्र पंडा और बाबा झलक के अनुसार, इसे सप्त कुंड भी कहा जाता है।
कुंड की विशेषताएं
-यह कुंड हमेशा जल से भरा रहता है और स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसका जल पवित्र और औषधीय गुणों से युक्त है।
-इसे पाताल जल स्रोत माना जाता है जो रावण के तप और शक्ति का प्रतीक है।
श्रद्धालुओं की राय और प्रशासन की उदासीनता
हालांकि धार्मिक महत्व अत्यधिक है, पर वर्तमान स्थिति उतनी संतोषजनक नहीं है। एक श्रद्धालु ने बताया कि शिवगंगा का प्रबंधन बेहतर हो सकता है, लेकिन गंदगी और पानी की कमी श्रद्धालुओं के लिए चिंता का विषय है। एक और श्रद्धालु ने भी कहा कि स्नान के दौरान गंदे पानी के कारण उन्हें परेशानी हुई, फिर भी उन्होंने श्रद्धा के साथ स्नान और पूजा की।
प्रशासन और मंदिर प्रबंधन से उम्मीदें
शिवगंगा की धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से जो महत्ता है, उसके अनुसार प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस स्थान की साफ-सफाई और मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित करे।