नई दिल्लीः उद्योगपति रतन टाटा एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। बुधवार को उनका निधन हो गया। उनके जीवन से लोगों को सीख मिलती हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि रतन टाटा ने अपनी करियर की शुरुआत एक कर्मचारी के तौर पर की थी। रतन टाटा की यह कहानी न केवल उनकी मेहनत और लगन को दर्शाती है बल्कि यह भी सिखाती है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। उनकी प्रेरणा आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। आइए आप को भी उनकी इस दिलचस्प कहानी के बारे में बताते हैं…
पहली नौकरी: IBM में
रतन टाटा ने आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से हासिल की। इसके बाद उन्होंने वहीं, बसने का मन बना लिया था। लेकिन रतन टाटा की दादी लेडी नवजबाई की तबियत खराब हो जाने से उनको वापस स्वदेश लौटना पड़ा। भारत लौटने के बाद रतन टाटा ने पहली नौकरी टाटा ग्रुप में नहीं, बल्कि IBM में की। इस बारे में उनके परिवार के लोगों को पता भी नहीं चला।
जेआरडी टाटा की नाराजगी
जब टाटा ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा को इस बात का पता चला तो वे काफी नाराज हुए। उन्होंने रतन टाटा को फोन करके फटकार लगा दी। उन्होंने कहा कि तुम भारत में रहकर IBM में नौकरी नहीं कर सकते। इसके बाद उन्होंने रतन टाटा से कहा कि वह अपना बायोडाटा भेज दें।
बायोडाटा बनाने की अनोखी प्रक्रिया
रतन टाटा के पास उस समय अपना बायोडाटा नहीं था,इसलिए उन्होंने IBM के ऑफिस में इलेक्ट्रिक टाइपराइटर पर अपना रिज्यूम टाइप किया। अपना बायोडाटा शेयर करने के बाद,1962 में उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई। टाटा परिवार के सदस्य होने के बाद भी रतन टाटा को अपनी कंपनी में सारे काम करने पड़े। उन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य करने का अनुभव लिया और धीरे-धीरे कंपनी के सर्वोच्च पद तक पहुंचे।
टाटा ग्रुप के अध्यक्ष
1991 में रतन टाटा ने टाटा संस और टाटा ग्रुप का अध्यक्ष पद संभाला। उन्होंने 21 वर्षों तक टाटा समूह का नेतृत्व किया और इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप 100 से अधिक देशों में फैला और टाटा नैनो कार भी उनकी ही अवधारणा थी।
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