रांची : हरेक वर्ष एडमिशन शुल्क से लेकर अन्य गतिविधियों का हवाला देते हुए निजी स्कूलों के द्वारा शुल्क में वृद्धि की जा रही है। एक ओर जहां सरकारी गाइडलाइन के अनुसार 2 वर्ष के अंदर 10 प्रतिशत से ज्यादा शुल्क नहीं बढ़ाए जाने की बात कही जा रही है वहीं दूसरी ओर शहर के कई ऐसे निजी स्कूल हैं जहां शुल्क वृद्धि को ले मनमानी की जा रही है। विरोध के स्वर तेज होने पर भी इन स्कूलों के प्रबंधन पर कुछ खास असर नहीं पड़ता है।
झारखंड पेरेंट्स एसोसिएशन के प्रदेश प्रवक्ता संजय सर्राफ ने बताया कि झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण (जेट) के चेयरमैन सहित सदस्य की सीट खाली होने से कोई भी अभिभावक अपनी फरियाद जेट में दर्ज नहीं करा सकते हैं, इसे सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जेट द्वारा सख्त कार्रवाई नहीं किए जाने का ही परिणाम है कि प्रतिवर्ष निजी स्कूलों के द्वारा मनमाने तरीके से शुल्क में वृद्धि की जा रही है।
सरकारी नियमानुसार निजी स्कूल 10 प्रतिशत तक ही शुल्क बढ़ा सकते हैं। जबकि कई स्कूलों में यह राशि 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ाई गई हैं। यह शुल्क एनुअल चार्ज, बिल्डिंग चार्ज, मिसलिनियस चार्ज, कंप्यूटर चार्ज, गेम्स चार्ज, सिक्योरिटी चार्ज, सीसीटीवी चार्ज, स्कूल चार्ज, एसएमएस चार्ज, मेडिकल चार्ज, आउटरिच चार्ज और डेवलपमेंट चार्ज के तौर पर लिया जा रहा है। लेकिन विभागीय कार्रवाई के नाम पर नतीजा सिफर है।
समिति की अनुशंसा पर ही होगी शुल्क में बढ़ोतरी :
झारखंड पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण जिसमें वर्षों से आयोग के अध्यक्ष मेंबर के बहाल नहीं होने से अभिभावकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके गठन की मांग के साथ-साथ झारखंड शिक्षा संशोधन अधिनियम 2017 को पूरे तरीके से राज्य के सभी जिलों के प्राइवेट स्कूलों में लागू कराए जाने की मांग की गई है।
हर एक स्कूल में शुल्क निर्धारण समिति का गठन अनिवार्य रूप से किया जाना है। जिसमें स्कूल एडमिशन के साथ साथ अभिभावक के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। उस समिति की अनुशंसा पर ही कोई शुल्क में बढ़ोतरी की जा सकती है। बताया कि 2 वर्ष के अंदर 10 प्रतिशत से ज्यादा शुल्क नहीं बढ़ाया जा सकता है। अगर शुल्क में बढ़ोतरी की जा रही है तो उसकी अनुशंसा जिला कमेटी के पास की जाएगी।
11 माह के बदले लेते हैं 12 माह का बस किराया :
कई स्कूल तो 11 माह के बदले 12 माह का बस किराया लेते हैं। जबकि गर्मी और सर्दियों की छुट्टियों के दौरान छात्रों से पैसा नहीं लिया जाना है। नियम है कि बस की सेवा जब तक मिलेगी तब तक ही छात्रों से शुल्क लिया जा सकता है। 11 माह सेवा देने वाले 12 माह का पैसा नहीं वसूलेंगे। सूत्रों की माने तो रांची जिले में 70 निजी स्कूल ऐसे हैं, जहां बस की सेवा ली जा रही है। इनमें से अधिकतर स्कूल निर्धारित से अधिक शुल्क छात्रों से ले रहे हैं। सरकारी नियमानुसार निजी स्कूल 10 प्रतिशत तक ही शुल्क बढ़ा सकते हैं। जबकि कई स्कूलों में यह राशि 10 से 20 प्रतिशत तक बढ़ाई जा रही हैं।
इन स्कूलों में बढ़ाई गई है फीस :
ज्यादातर स्कूल प्रबंधनों के अनुसार सत्र 2023-24 में 10 प्रतिशत तक ट्यूशन फीस बढ़ाए गए हैं। इनमें गुरुनानक पब्लिक स्कूल, डीएवी स्कूल्स और फिरायालाल पब्लिक स्कूल में दो साल के बाद ट्यूशन फीस बढ़ाया गया है। वहीं डीपीएस रांची, टेंडर हार्ट स्कूल में भी ट्यूशन फीस 10 प्रतिशत बढ़ाने की जानकारी अभिभावकों ने दी है। इसके साथ ही कैंब्रियन स्कूल और संत थामस स्कूल में भी इस साल ट्यूशन फीस में 10 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी हुई है।
डीएवी कपिलदेव, डीएवी बरियातू में भी फीस बढ़ाई गई है। जेवीएम श्यामली, ब्रिजफोर्ड स्कूल में फीस बढ़ोत्तरी को लेकर सूचना प्राप्त नहीं हुई है। वहीं समरजीत जाना कहते हैं कि कोविड के बाद बहुत सारे स्कूलों में फीस बढ़ोत्तरी नहीं की गई थी ताकि अभिभावकों को किसी प्रकार की परेशानी न हो। ऐसे में कुछ स्कूलों में फीस बढ़ोत्तरी की जा रही है। ज्यादातर स्कूल प्रबंधन हर दो साल में सरकार की गाइडलाइन के तहत 10 प्रतिशत से कम फीस बढ़ाते हैं। फीस बढ़ोत्तरी सुचारू ढंग से स्कूलों को संचालित करने के लिए किया जाता है।
स्कूल प्रबंधन की बढ़ रही मनमानी :
पैरेंट्स ने कहा कि स्कूल प्रबंधन को यह पता होना चाहिए कि कोरोना के बाद हालात बदले हैं और कई लोगों की जहां नौकरी चली गई है वहीं सैलेरी में भी वृद्धि नहीं हुई है। इसके बाद भी किताबों की बढ़ी कीमत और फीस में बढ़ोत्तरी को झेलना पड़ता है। स्कूल प्रबंधन की मनमानी के कारण हमलोगाें की परेशानी बढ़ गई है। किताब लेने के लिए भी कमीशन का खेल चल रहा है। इनके द्वारा तय दुकानों से ही किताबों की खरीदारी करनी पड़ती है। एनसीईआरटी की जगह प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबें चलाई जा रही हैं। जिसकी कीमत कहीं अधिक होती है। वहीं एकाध दिन स्कूल आने में भी लेट हो जाए तो स्कूल प्रबंधन फाइन लेने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। इन चीजों पर जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग को ध्यान देना चाहिए।
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क्या कहता है जेट अधिनियम :
जेट अधिनियम कहता है कि दो साल पर प्राइवेट स्कूल प्रबंधक 10 प्रतिशत तक फीस बढ़ा सकते हैं। अगर हर साल फीस बढ़ानी है तो वह पांच-पांच प्रतिशत हो सकती है। अधिक फीस बढ़ानी है तो जिला स्तर पर फीस निर्धारण कमेटी से अनुमति लेनी होगी। दूसरी तरफ पेरेंट्स बढ़ी हुई फीस से परेशान हैं। अभिभावकों का आरोप है कि प्राइवेट स्कूल मनमाने तरीके से फीस बढ़ा रहे हैं।