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महाकुंभ, बाइक और बवंडर बाबा… 1.15 लाख KM की यात्रा कर पहुंचे प्रयागराज, जानिए संन्यासी बनने की कहानी

by Rakesh Pandey
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प्रयागराज : महाकुंभ 2025 में इस बार एक खास रंग देखने को मिल रहा है और यह रंग है, बवंडर बाबा का। ये संत अपनी बाइक से महाकुंभ पहुंचे हैं, जिनकी यात्रा का उद्देश्य जन-जागरूकता फैलाना है। बवंडर बाबा का नाम और उनकी बाइक पर लगे संदेशों ने उन्हें एक नई पहचान दिलाई है। उनकी बाइक पर केसरिया रंग का झंडा और जागरूकता से जुड़े संदेश अंकित हैं। बवंडर बाबा ने देश के 25 राज्यों में जन जागरूकता के लिए 1.15 लाख किलोमीटर की यात्रा की है, और अब महाकुंभ में आकर उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

बवंडर बाबा का उद्देश्य

बवंडर बाबा का कहना है कि उनका उद्देश्य समाज में एक बड़ा बदलाव लाना है, खासकर हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों और मूर्तियों के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाना है। उनका संदेश है कि पूजा पाठ के बाद देवी-देवताओं के चित्र और मूर्तियों को कचरे में नहीं फेंकना चाहिए। वे इस बात पर जोर देते हैं कि धर्म में विधिपूर्वक इनका विसर्जन करने के तरीके बताए गए हैं, और इसे सभी को पालन करना चाहिए।

बवंडर बाबा का यह संदेश लोगों को यह समझाने का है कि किसी भी धार्मिक प्रतीक को अपमानित करना हिंदू धर्म के खिलाफ है। उनका यह अभियान समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है, ताकि लोग अपने देवी-देवताओं को सम्मान दे सकें और उनकी पूजा को सहेज सकें।

संन्यास की प्रेरणादायक यात्रा

बवंडर बाबा, जिनका असली नाम विनोद सनातनी है, मध्य प्रदेश के निवासी हैं और उन्होंने महज 14 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था। अपने इस संन्यास के बाद से ही वे समाज सेवा और जनकल्याण के कार्यों में जुट गए थे। विनोद ने देखा कि लोग धार्मिक प्रतीकों के साथ बहुत बेपरवाह होते जा रहे हैं, और पूजा के बाद इन चित्रों और मूर्तियों को कचरे में फेंक दिया जाता है, जिससे उन्हें बहुत दुख होता था।

इस बात से प्रेरित होकर बवंडर बाबा ने देशभर में जागरूकता फैलाने का संकल्प लिया। वे बाइक पर चढ़कर देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करने लगे और लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि धार्मिक प्रतीकों को गंदगी में न फेंका जाए। उनका अभियान धीरे-धीरे देशभर में फैलता चला गया।

उज्जैन कुंभ और बवंडर बाबा की पहचान

बवंडर बाबा ने अपनी यात्रा की शुरुआत उज्जैन से की थी, जहां उन्होंने एक महत्वपूर्ण संकल्प लिया था। उज्जैन में कुंभ मेले के दौरान उन्हें अपनी पहचान मिली और उन्होंने अपना नाम बवंडर बाबा रख लिया। बवंडर बाबा का मानना है कि इस नाम से उनके उद्देश्य और संदेश को और प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।

वह इस अभियान का श्रेय एक साधारण कन्या को देते हैं, जिन्होंने उन्हें यह एहसास दिलाया कि लोग अनजाने में देवी-देवताओं का अपमान कर रहे हैं। इसके बाद उन्होंने अपनी यात्रा को और तेज़ी से बढ़ाया और पूरे देश में जन जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया।

1.15 लाख किलोमीटर की यात्रा

बवंडर बाबा ने अब तक 25 राज्यों की यात्रा की है और इस दौरान उन्होंने 12 ज्योतिर्लिंगों और 29 शक्तिपीठों का भी दौरा किया। उनकी बाइकनुमा रथ पर हर जगह सोशल मीडिया से जुड़े प्रचार माध्यमों के चित्र और उनका संपर्क नंबर भी लिखा हुआ है, ताकि लोग उनसे संपर्क कर सकें और उनके संदेश को समझ सकें।

बवंडर बाबा का रथ केवल एक साधारण वाहन नहीं, बल्कि एक जागरूकता का प्रतीक बन चुका है। इस रथ में उनका खाना, आराम करने का सामान और पूजा का सामान भी रहता है। उनके रथ पर सनातन धर्म की ध्वजा हमेशा फहराती है, जो उनकी आस्था और उद्देश्य को दर्शाती है।

कुंभ में बवंडर बाबा की उपस्थिति

अब, जब बवंडर बाबा महाकुंभ में पहुंचे हैं, तो लोग उन्हें देखने और उनसे मिलने के लिए उमड़ पड़ते हैं। बाबा के साथ सेल्फी लेने और उनके संदेश को सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं। उनकी उपस्थिति से कुंभ के माहौल में एक नई ऊर्जा और जागरूकता का संचार हो रहा है। बवंडर बाबा का संदेश है, ‘हमारी धार्मिक आस्थाओं और प्रतीकों को सम्मान दें, क्योंकि यही हमारी संस्कृति और पहचान का हिस्सा हैं’। उनका यह अभियान एक अनवरत यात्रा है, जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए चल रहा है।

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