सेंट्रल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर आज मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया है। इस पीठ के 5 जजों में से 4 जजों ने अपना फैसला सुनाया है। प्रमुख न्यायाधीश CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने पहले फैसले में समलैंगिकों को शादी का अधिकार देने की बात पर जोर दिया है और समलैंगिकों के साथ होने वाले भेदभाव को दूर करने के लिए निर्देश भी जारी किए हैं। केंद्र ने संविधान पीठ से कहा था कि सरकार एक कमेटी बनाकर समलैंगिक जोड़ों के अधिकार के मुद्दे पर हल निकालेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि अगर अदालत इसमें प्रवेश करती है तो यह एक कानूनी मुद्दा बन जाएगा।
संविधान पीठ ने कहा- कोर्ट स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव नहीं कर सकता। सेम सेक्स मैरिज पर चल रहे लंबे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट अपना पल्ला झाड़ता हुआ नजर आ रहा है। मंगलवार को कोर्ट की तरफ से फैसला सुनाया गया। बता दें कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है। 17 अक्टूबर को 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि कोर्ट स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव नहीं कर सकता। कोर्ट सिर्फ कानून की व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है।
4 जजों ने सुनाया फैसला
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी। जस्टिस हिमा कोहली को छोड़कर फैसला चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा ने बारी-बारी से फैसला सुनाया। CJI ने सबसे पहले कहा कि इस मामले में 4 जजमेंट हैं। एक जजमेंट मेरी तरफ से है, एक जस्टिस कौल, एक जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा की तरफ से है। इसमें से एक डिग्री सहमति की है और एक डिग्री असहमति की है कि हमें किस हद तक जाना होगा।
CJI ने क्या दिया बयान
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘होमोसेक्शुअलिटी या क्वीरनेस सिर्फ अर्बन इलीट क्लास तक सीमित नहीं है। ये सिर्फ अंग्रेजी बोलने वले और अच्छी जॉब करने वाले व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों में खेती करने वाली महिलाएं भी क्वीर हो सकती हैं। ऐसा सोचना कि क्वीर लोग सिर्फ अर्बन या इलीट क्लासेस में ही होते हैं, ये बाकियों को मिटाने जैसा है। शहरों में रहने वाले सभी लोगों को क्वीर नहीं कहा जा सकता है। क्वीरनेस किसी की जाति या क्लास या सोशल-इकोनॉमिक स्टेटस पर निर्भर नहीं करता। ये कहना भी गलत है कि शादी एक स्थायी और कभी न बदलने वाला संस्थान है। विधानपालिका कई एक्ट्स के जरिए विवाह के कानून में कई सुधार ला चुकी है।‘
हर व्यक्ति को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है। उसी तरह ट्रांसजेंडर पुरुष को महिला से शादी करने का अधिकार है। हर व्यक्ति को अपने पार्टनर को चुनने का अधिकार है। वो अपने लिए अच्छा-बुरा समझ सकते हैं। आर्टिकल 15 सेक्स ओरिएंटेशन के बारे में भी बताता है। हम सभी एक कॉम्प्लेक्स सोसाइटी में रहते हैं। एक-दूसरे के प्रति प्यार और सहयोग ही हमें मनुष्य बनाता है। हमें इसे देखना होगा। इस तरह के रिश्ते अनेक तरह के हो सकते हैं। हमें संविधान के भाग 4 को भी समझना होगा।
सैम सेक्स मैरेज रजिस्टर करने की थी मांग
दरअसल, सेम सेक्स मैरिज का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं ने इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करने की मांग की थी। वहीं, केंद्र सरकार ने इसे भारतीय समाज के खिलाफ बताया था। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 21 पिटीशंस में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक पार्ट को रद्द कर दिया था।
पांच साल पहले ही अपराध नहीं रहे समलैंगिक संबंध
समलैंगिक संबंधों को पांच साल पहले अपराध के दायरे से बाहर कर चुके सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सीजेआई के मुताबिक इसपर अलग-अलग कुल चार फैसले हैं। संविधान के अनुरूप न्यायिक समीक्षा उचित है। सीजेआई ने कहा कि ऐसे में हमने मूल अधिकार के मामले में विचार किया। अदालतें कानून नहीं बनातीं।
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इन देशों में समलैंगिक विवाह को मिली है मंजूरी
दुनिया में अभी 33 ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली हुई है। हालांकि, ज्यादातर देशों में अदालत के फैसले के बाद ही समलैंगिकों को ये अधिकार मिला। समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने वाला सबसे पहला देश नीदरलैंड बना। इसके अलावा ऑस्ट्रिया, ताइवान, कोलंबिया, अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, क्यूबा, डेनमार्क, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, माल्टा, फिनलैंड, ब्रिटेन जैसे देशों में भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली हुई है।